किसी मित्र को इनबॉक्स भेज कर कहा ”लो पढ लो तुम भी क्या याद करोगे …”
जवाब आया …
”बाप रे बाप इतने सारे आतंकवादी संगठन के बारे में जानकारी कहानी से एकदम हटकर यह एपिसोड कुरान की आयते तक याद है नमन है आपको मुगल पकवान एक से एक बढ़ कर एक मुंह में पानी आ गया।”
”इस एपिसोड में बहुत सी ऐसी बातें हैं जो कई लोगों को पता भी नहीं है शायद मुझे भी नहीं पता था इन बातों की जानकारी के लिए हम आपका जितना भी शुक्रिया अदा करें कम ही होगा क्योंकि बहुत सी ऐसी बातें हैं जिनसे हम अनभिज्ञ थे। आप इतना डीप सोचते हैं आप इतनी बारीकी से सोचते हैं सच में आपको कोई भी क्षेत्र दे दिया जाए आप उसको इतना अच्छा परोसते हैं मैंने तो शायद ऐसा राइटर नहीं देखा होगा. एक बार फिर से धन्यवाद”
गतांक से आगे …
मसूरी से आने वाले समाचारों के कारण देरी से पहुंचने के कारण माधव भाई साहब और रश्मि भाभी हमारी प्रतीक्षा करते करते चिंतित और निराश हो चुके थे। हमें देख कर उन्हें और वहां उपस्थित अतीथियों सहित वन वाटिका के कर्मचारियों को तसल्ली हुई, हमारी आवभगत के बाद हमें बताया गया कि हमारे ठहरने की व्यवस्था सामने ऐतिहासिक गांव लखवाड़ में व्हिस्परिंग टारेंट्स नामक कैम्पिंग रिसॉर्ट में की गयी है जहां से केम्पटी फॉल्स के झरनों के गिरने की आवाज़ आती है। वाटिका में ऊंचे-नीचे अलग-अलग लेकिन पास-पास वन सामग्री से कर्मचारियों के आवास बने हुए थे और एक ऊंचे स्थान पर अधिकारियों का विश्रामगृह और एक बड़ा सा डाइनिंग हॉल था लेकिन चांद की रोशनी में घुला हुआ मौसम का गुलाबीपन पृकृति की सुंदरता से अठखेलियों के साथ खाने का आनंद उठाने के लिये आमंत्रित कर रहा था। जल्दी ही तर ओ ताज़ा हो कर हम खाने पर पहुंचे तो खाने पर हमारी ही प्रतीक्षा हो रही थी।
गुलाबी ठण्ड़ी हवा में मटन रोगन जोश, चिकन चंगेजी, शीर खुरमा, मुर्ग़ बिरयानी, सेवईंयों के साथ हलीम, कीमा क़बाब, गुलक़्ती, शीरमाल, तन्दूरी नांन और रूमाली रोटी की सुगंध नथुनों से होती हुई पेट में भूख की आग को भड़का रही थी। माधव भाई साहब ने अपने साथी तथा स्थानीय प्रशासनिक अधिकारियों और उनकी पत्नियों से संक्षिप्त परिचय कराया। खाने की प्रशंसा के साथ ही ईद और दिन भर की घटनाओं पर चर्चा चल पड़ी। राघव भैय्या ने माधव भाई साहब के साथी अधिकारी शराफ़त अली खां उर्फ़ शफ़ी व शादाब कुरैशी से पूछा … ‘‘खां साहब ये ईद तो मीठी ईद है ना? फिर इस दिन …?
राघव भैय्या की बात पूरी होने से पहले ही माधव भाई साहब के दूसरे साथी अधिकारी शादाब कुरैशी ने कहा … ‘‘नहीं नहीं राघव साहब, ये मीठी ईद नहीं है। ये ईद मिलादुन्नबी है जो बकरीद और मीठी ईद से अलग है।’’
तन्दूरी नांन के साथ मटन रोगन जोश के शोरबे में एक बोटी लपेट कर मुंह में रखते हुए राघव भैय्या ने अनभिज्ञता प्रकट करते हुए पूछा … ‘‘यानी?’’
चम्मच में भरा हुआ शीर खुरमा मुंह तक ले जाना रोक कर उत्तर शराफ़त अली खां ने दिया … ‘‘ईद मिलादुन्नबी यानी पैगंबर ए इस्लाम हज़रत मोहम्मद सलल्लाहू अलेही वसल्लम का योम ए विलादत यानी जन्मदिन है जो इस्लामी कैलेण्डर के रबि उल अव्वल महीने की 12वीं तारीख को अरब के पवित्र शहर मक्का शरीफ़ क़ुरैश कुनबे में हुआ था। इस दिन को बारावफ़ात भी कहते हैं।’’
राघव भैय्या शीरमाल के साथ शीर खुरमे का चटखारा ले रहे थे तब रश्मि भाभी ने शादाब क़ुरैशी की तरफ हंसते हुए देखा और चर्चा आगे बढाते हुए कहा … ‘‘अरे वाह!!! फिर तो शादाब क़ुरैशी मौहम्मद साहब के कुनबे से हुए।‘‘
शादाब क़ुरैशी मुर्ग़ बिरयानी से भरे हुए मुंह से बोलने का प्रयास असफल हुआ तो शराफ़त अली खां ने व्यंगात्मक शैली में कहा … ‘‘अरे नहीं भाभीजी, मौहम्मद सलल्लाहू अलेही वसल्लम क़ुरैश यानी व्यापारी कुनबे से थे और ये क़ुरैशी हैं यानी कसाई।’’
शादाब क़ुरैशी ने बनावटी गुस्से से शराफ़त अली खां की तरफ देखा तो शराफ़त अली खां ने हंसते हुआ कहा … ‘‘देखो शादाब मियां, गुस्सा थूक दो लेकिन मुंह का निवाला थूका तो हुजूर के योम ए विलादत के तबर्रूक़ की शांन में बेअदबी होगी। जो नाक़ाबिले बर्दाश्त और नाक़ाबिल ए माफ़ होगी ये पहले ही बताए देते है हां, फिर ना कहना।‘‘
हंसी के कारण सब के मुंह के निवालों में रस भर रहा था लेकिन रश्मि भाभी ने बहुत मासूमियत से पूछा … ‘‘शफ़ी भैय्या! आज मौहम्मद साहब की जयंति अर्थात जन्मदिन है तो उनकी पुण्य तिथी कब है और उस दिन क्या किया जाता है?’’
रश्मि भाभी के प्रश्न पर दोनों एक दूसरे का मुंह देखने लगे और उत्तर बड़ी गम्भीरता के साथ शराफ़त अली खां ने अपनी प्लेट में मटन रोगन जोश डालते हुए बडे निर्विकार भाव से दिया … ‘‘ये एक ऐसा नायाब इत्तेफ़ाक है कि पैगंबर ए इस्लाम हजरत मौहम्मद सललाहू अलेही वसल्लम का योम ए विलादत और दुनियां से पर्दा किये जाने का दिन एक ही है। यानी पवित्र माह रबी उल अव्वल के आज बारहवें दिन ही मक्का शरीफ़ में वे दुनियां को छोड़ गये थे।‘‘
शादाब क़ुरैशी ने शराफ़त अली खां के कथन को आगे बढ़ाते हुए बड़े गर्व से कहा … ‘‘और दुनियां की तारीख़ में ऐसी कोई दूसरी मिसाल ढूंढने से भी नहीं मिलती।’’
बाकी सब किसी रेलगाड़ी के प्रथम श्रेणी यात्री की तरह स्वादिष्ट खाने का आनंद ले रहे थे और रष्मि भाभी के सवालों की मालगाड़ी धीरे चलते हुए भी किसी भी पड़ाव पर रूक नहीं रही थी। रश्मि भाभी का अगला प्रश्न बहुत मासूम था … ‘‘तो क्या उनके जन्मदिन की तरह उनकी पुण्यतिथी भी मनाते है?’’
शराफ़त अली खां और शादाब क़ुरैशी के हाथों के निवाले मुंह में जाने से रूक गये और वो एक दूसरे की तरफ देखने लगे। उन्हें निशब्द देख रश्मि भाभी ने उनकी असमंजसता को भांपते हुए बात को संभालना चाहा … ‘‘नहीं नहीं भैय्या, मेरा आशय केवल यह था कि मैं आप को मौहम्मद साहब के जन्मदिन की बधाई दूं या उनकी मोक्ष की प्रार्थना करूं?’’
दोनों के मुंह में जैसे रेत भर गयी हो। बुरा सा मुंह बनाते हुए शराफ़त अली ने कहा … ‘‘जी दर अस्ल रसूल मोहम्मद सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम से पहले पूरे अरब में सामाजिक और धार्मिक ढांचा बिगड़ा हुआ था। कमजोर, ग़रीब और ख़ासतौर से औरतों का जीवन सुरक्षित नहीं था। नबी ए इस्लाम ने लोगों को जीवन में पाक साफ रहने के तौर तरीक़े बताये और लोगों की जानमाल की सुरक्षा के लिये इस्लामिक नियम बताये, एकेश्वरवाद की शिक्षा दी और उस सर्वशक्तिमान रब्बुल इज्जत के पवित्र संदेश को सभी लोगों तक पहुंचाने के साथ उसकी प्रार्थना के लिये जीवन में अपने व्यवहार और आचरण से जो नज़ीरें पेश की वो दुनियां में आम अवाम के लिये शांती और सुरक्षा के लिये कारगर साबित रही। इसलिये केवल मुबारकबाद ही दीजिये।’’
दिन भर के भूखे शेखर के चेहरे पर भी संतुष्टि के भाव आ चुके थे और हमारे साथ बाकी अन्य अतीथि भी खाने का आनंद लेते हुए रश्मि भाभी, शराफ़त अली खां और शादाब क़ुरैषी के मध्य चल रही चर्चा को रूचिपूर्वक सुन रहे थे। उधर रश्मि भाभी ने तो आज जैसे ईद पर शोध पूरी करने का निश्चय कर रखा था। उनका अगला प्रश्न था … ‘‘लेकिन रजब उल अव्वल की बारहवीं तारीख तो कल थी!!! फिर ईद मिलादुन्नबी एक दिन बाद क्यों? और औरतों की सुरक्षा ……?’’
रश्मि भाभी ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी लेकिन उनके प्रश्नों का उत्तर जानने की उत्सुकता में सभी अतीथियों की दृष्टी का केन्द्र शराफ़त अली खां और शादाब क़ुरैशी थे लेकिन उनके चेहरे बता रहे थे कि उनके पास कोई उत्तर नहीं था। इतनी कम उम्र में ही चार-चार बच्चों की मां बन चुकी शराफ़ अली खां की पत्नि शबाना बेग़म और शादाब क़ुरैशी की पत्नि रूखसाना बेग़म के अंतर्मन में कहीं दबे हुए प्रतिरोध की अंगड़ाईयां उनकी आंखों में लहराते हुए रश्मि भाभी को मुग्धभाव से देख रही थी जैसे रश्मि भाभी उनकी वकील हो और वो रश्मि भाभी के प्रश्नों में अपनी सामाजिक स्थिती का आंकलन कर रही हो। रश्मि भाभी के प्रश्न से उपजी नीरवता में राघव भैय्या की आवाज़ ने फिर से हवाओं में स्पंदन को गतिमान किया। वे बोले … भाई रश्मि भाभी के प्रश्नों का उत्तर तो इस समय एक ही व्यक्ति दे सकता है।’’
सब की दृष्टि राघव भैय्या की तरफ घूम गयी और शबाना बेग़म ने अपनी महीन रेशमी आवाज़ में पूछा … ‘‘कौन?’’
रूखसाना बेग़म ने भी हांक लगाते हुए कहा … ‘‘आय हाय, हमारे मौलाना शादाब और इमाम शराफ़त अली के अलावा इस महफ़िल में दूसरा कौन शरीयत का आलिम हो सकता है?’’
राघव भैय्या ने नारा सा बुलंद करते हुए कहा … ‘‘और वो है छह तंदूरी नांन, आठ रूमाली रोटी, दो डोंगे मटन रोगन जोश, दो चिकन चंगेजी, एक प्लेट मुर्ग़ बिरयानी, चार कटोरे शीर खुरमा, दो कटोरे सेवंईंया, और चार शीरमाल चटका चुका हमारा ज्ञानी भाई, शेखर!!’’
शेखर ने जल्दी-जल्दी तश्तरीयों में हाथ मारते हुए कहा … ‘‘किसी सुबह से भूखे को रोटी तो चैन से खा लेने दो राघव!! अभी तो हम वार्मअप भी नहीं हुए, खाने का स्वाद दांतों में ही अटका हुआ है इसे आंतों तक तो पहुंचने दो भाई।’’
राघव भैय्या और शेखर के व्यंगात्मक संवाद ने भारी होते वातावरण में रातरानी की सुगंध का एक झौंका सा आया और सब अतीथियों की हंसी के बीच राघव भैय्या ने शेखर से कहा … ‘‘हे सर्वभक्षी, लक्कड़ हजम पत्थर हजम जठराग्नि पूजक, व्योंम के प्याले में ओंम की सोम के पीने वाले भूखानंद महाराज, आप के मुखकुण्ड़ में समस्त रस स्वाहा होने पर भी आप की क्षुधाग्नि शांत नहीं हो सकती। अतः कृपापूर्वक अपनी इस लीला को रोक कर अपनी अमृतवाणी से हमारे कानों में रस घोलिये।’’
उपस्थितों में से अधिकांश ने एक स्वर से कहा … ‘‘हां हां, बताईये बताईये।’’
शेखर ने एक बार फिर जल्दी-जल्दी तश्तरीयों में हाथ मारे और मुंह में ठुंसे हुए निवालों को गटक कर थोड़ा सा पानी पी कर एक छोटी सी डकार ली और सभी की तरफ दृष्टी घुमा कर सम्मोहन उत्पन्न कर बोले … ‘‘देवियों और सजनों, बहुत प्रसिद्ध सूक्त है कि सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रुयात्, न ब्रुयात् सत्यम् अप्रियम्। प्रियं च नानृतम् ब्रुयात्, एष धर्मः सनातनः।। अर्थात सत्य बोलना चाहिये, प्रिय बोलना चाहिये, सत्य किन्तु अप्रिय नहीं बोलना चाहिये और प्रिय किन्तु असत्य नहीं बोलना चाहिये; यही सनातन धर्म है। लेकिन हम इसमें थोड़ा संशोधन कर देते हैं और कहते हैं कि चाहे अप्रिय ही हो किंतु बोलना हमेंशा सत्य ही चाहिये। साथ ही यह भी कि सत्य कहने और सुनने के लिये किसी किताबी सिद्धांत की नहीं वरन् व्यक्तिगत साहस की आवश्यकता होती है। यदि आप में सुनने का साहस है तो हम अपना कथन जारी रखें?’’
कह कर शेखर पुनः जल्दी-जल्दी हाथ प्लेट से मुंह तक ले जाने लगे। शराफ़त अली खां और शादाब क़ुरैशी की असहजता सिद्ध कर रही थी कि वे शेखर के कथन से स्वयं को लक्षित मान रहे थे। उत्तर शराफ़त अली खां ने दिया और बोले … ‘‘देखो शेखर साहब, मज़हब बहुत नाज़ुक मसला है।’’
आगे का वाक्य शादाब क़ुरैशी ने पूरा किया … ‘‘इसमें बेअदबी मुंह का ज़ायका और पार्टी का मज़ा किरकिरा कर सकती है लिहाज़ा…।’’
शेखर का पूरा ध्यान अपने खाने पर था और राघव भैय्या शराफ़त अली और शादाब क़ुरैशी से कह रहे थे … ‘‘अमां सूत न कपास और आप चादर बुनने लगे। आप ने शेखर को कोई ज़ाहिल और गंवार समझ लिया लगता है। दीन और मज़हब का जितना इल्म शेखर को है आप को इस बात का अंदाज़ा भी नहीं होगा।’’
शबाना बेग़म ने अपनी रेशमी आवाज़ में राघव भैय्या का समर्थन करते हुए शराफ़त अली से कहा … ‘‘खां साहब, इस्लाम में झूठ और सच के नताइज (परिणाम) बहुत तफ़सील (विस्तार) से बताये गये हैं। हज़रत हकीम बिन हिज़ाम रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है कि हुज़ूरे अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने तिजारत (व्यापार) करने वालों के लिये फ़रमाया है कि फरोख़्त करने वाले और ख़रीदार को इख़्तियार है जब तक वह मजलिस से जुदा ना हों। अगर दोनों ने हक़ीक़त को ना छुपाया और सच बोला तो उनकी ख़रीद व फरोख़्त में बरकत डाल दी जायेगी और अगर हक़ीक़त को छुपाया और झूठ बोला तो ख़रीद व फरोख़्त की बरकत ख़त्म हो जायेगी। हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया कि जो ताजिर सच्चा और अमानतदार हो वह क़यामत के दिन अंबिया, सिद्दीकीन और शहीदों के साथ होगा।’’
शबाना बेग़म ने साहस कर के यह बोल तो दिया लेकिन किसी अज्ञात भय से उसकी सांस फूल कर तेज हो गयी थी। तब शेखर ने अपना हाथ मुंह तक जाने से रोक कर कहा ‘‘यह हदीस मुख्तलिफ़ कुतुबे हदीस में मौज़ूद है, इसकी सनद पर कुछ उलेमाओं ने कलाम किया है, लेकिन यह हदीस अच्छे मायने और मफ़हूम अपने अन्दर लिए हुए है। लिहाज़ा हमें ज़िंदगी में ही नहीं बल्की कारोबार में भी केवल और केवल सच बोलना चाहिये, कभी झूठ नहीं बोलना चाहिए।’’
शबाना बेग़म के साहस और शेखर के कथन से उत्साहित रूखसाना बेग़म भी जैसे बोलने की प्रतीक्षा कर रही थी। बहुत सलीके से शबाना की बात को आगे बढाते हुए शादाब क़ुरैशी को लक्ष्य कर के बोली … ‘‘शादाब मियां, हज़रत हसन बिन अली रदियल्लाहु अन्हुमा से रिवायत है कि मुझे हुज़ूरे अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की यह बातें याद हैं, जो बात शक में मुबतला करे उसको छोड़ दो और उसको इख़्तियार करो जो शक में ना डाले। क्योंकि सच्चाई इत्मीनान है और झूठ शक है। इतना ही नहीं शरीअत-ए-इस्लामिया में इन्सानी क़ौम की मुहलिक (जानलेवा) बीमारी झूठ से बचने की न सिर्फ तालीम दी गई बल्कि झूठ बोलने को बड़ा गुनाह (गुनाह-ए-कबीरा) क़रार दिया गया है, अल्लाह तआला ने झूठों पर लानत (अभिशाप) फरमाई है, उनके लिए जहन्नुम (नरक) तैयार की है जो बदतरीन (सब से खराब) ठिकाना है। अल्लाह तआला ने सुरह अहज़ाब आयत 70-71 में ईमान वालों से खि़ताब (को संबोधित) करते हुए कहा है कि अल्लाह तआला से डरो और सीधी सच्ची बात कहा करो।’’
ऐसा लग रहा था कि झूठ और सच पर कु़रान और हदीस पर कोई सेमीनार चल रही हो। इधर शबाना बेग़म की सांसे संयत हो चुकी थी और उसे रूखसाना बेग़म का संबल मिलने से वह अधिक उत्साह से बोली ‘‘और सुनो शराफ़त अली खां साहब, झूठ बोलने वालों के बारे में सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सख्त वईदें (चेतावनीयां) हैं, उन्होंने फरमाया कि सच्चाई को लाज़िम (आवश्यक रूप से) पकड़ो, क्योंकि सच नेकी की राह (रास्ता) दिखाता है और नेकी जन्नत (स्वर्ग) की तरफ ले जाती है और झूठ से बचे रहो, इसलिए कि झूठ गुनाह ए फ़िस्क़ ओ फ़ुजूर (दुराचार और बदलचलनी का पाप) है, और फुजूर दोज़ख़ (नरक) की राह बताता है।’’
हम सब खाना भूल कर इस वार्तालाप के माध्यम से इस्लाम में सच और झूठ के मुक़दमे की बहस सुन रहे थे। उधर शेखर निश्चिंत हो कर शीर खुरमे का प्याला मुंह से लगाए हुए थे। शराफ़त अली खां और शादाब क़ुरैशी अपनी-अपनी पत्नि को आश्चर्य से देख ही रहे थे कि शेखर ने सेवईंयों को सुड़क कर उदरस्थ कर मुंह पर हाथ फेरा और पेपर नेपकिन से हाथ पौंछते हुए कहा … ‘‘हां जी, अब ठीक है। तो अब शरीअत की रूह से सच और झूठ का अहवाल ये है देवियों और सज्जनों कि शरीअत-ए-इस्लामिया ने भी झूठ बोलने से मना किया है, वहीँ सच बोलने की तरफ ख़ास ध्यान दिलाया गया है और बार बार सच बोंलने की ताकीद की गई है। मोहम्मद साहब ने हमेशा सच बोलने की तालीम (शिक्षा) दी और किसी भी सूरत में झूठ बोलने से मना फ़रमाया। मोहम्मद साहब के हमेशा सच बोलने का तो किस्सा मशहूर है कि उन को नबी न मानने वालों ने भी उन की सच्चाई और अमानतदारी से मुतअस्सिर (प्रभावित) होकर नुबुव्वत से पहले ही उन को सादिक़ और अमीन जैसे अलक़ाब से नवाज़ा था। यहां तक कि इस्लाम का सबसे बड़ा दुश्मन अबु जहल भी तस्लीम करता था कि मोहम्मद साहब कभी झूठ नहीं बोलते थे।’’
दंतखुदनी से दांत कुरेद कर शेखर ने मुंह साफ़ किया और आगे बोले … ‘‘तमाम अंबिया-ए-किराम ने भी हमेशा सच बोलने की ताकीद फरमाई है जैसे कि सूरह ए मरयम आयत 41 की रूह से ये फरमान-ए-इलाही ऐलान हुआ है कि हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम को याद करो, बेशक वह निहायत (बहुत) सच्चे पैगम्बर थे। इसी तरह क़ुरान-ए-करीम सुरह-ए-यूसुफ़ 51 में हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम के बारे में है कि हज़रत ज़ुलैख़ा ने उनको अपनी तरफ माइल (इच्छुक) करना चाहा, लेकिन हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ने सच्चाई का दामन नहीं छोड़ा।’’
एक हल्का सा खेंकारा कर शेखर ने कथन जारी रखा … ‘‘अब ये जानिये कि अल्लाह तआला ने अपने कलाम ए पाक में भी पूरी इंसानियत को कई बार सच बोलने की तालीम (शिक्षा) दी है। जैसे कि सूरह ए तौबा की आयत 119 में कहा है कि ऐ ईमान वालों! अल्लाह से डरो और सच्चे लोगों का साथ दो। इसी तरह सूरह अल्माइदा आयत 119 में फरमान-ए-इलाही है कि क़यामत के दिन अल्लाह तआला फरमाएगा कि आज वह दिन है कि सच बोलने वालों को उनकी सच्चाई ही फ़ायदा (लाभ) देगी और सूरह ए मोमिन आयत 28 में साफ़ तौर पर अल्लाह तआला झूठ बोलने वालों की मज़म्मत (निंदा) करते हुए फ़रमाता है कि वो उन लोगों को राह (रास्ता) नहीं दिखाता जो फ़ुज़ूलखर्ची करने वाले हैं और झूठे हैं।’’
‘‘इसलिये देवियों और सज्जनों झूठ बोलने वालों और दूसरों को मूर्ख (बेवक़ूफ़) बनाने के परिणाम बहुत घातक (मुहलिक) और खतरनाक हैं, और झूठ बोलने वाले के साथ-साथ दुसरे भी इसके बुरे परिणामों से महफूज़ (सुरक्षित) नहीं रहते, इसलिए हमें हमेशा झूठ बोलने से बचना चाहिए तथा केवल और केवल सच बोलना चाहिये फिर चाहे जो परिणाम हो। अब निर्णय आप को करना है कि मैं सच कहूं या चुप रहूं?’’
इतना कह कर शेखर दंतखुदनी से दांतों में फंसे मटन रोगन जोश और चिकन चंगेजी के टुकड़े निकालने लगे। शराफ़त अली खां और शादाब क़ुरैशी निशब्द थे और शबाना बेग़म व रूख़साना बेग़म प्रशंसा व कृतज्ञ भाव से शेखर को निहार रही थी। माधव भाई साहब और रश्मि भाभी सहित अन्य अतीथि शेखर के इस्लामी ज्ञान पर आश्चर्यचकित तथा मैं और अंजली भाभी गर्वित थे। तब राघव भैय्या ने उठ कर शेखर का कंथा थपथपाते हुए कहा ‘‘शाबास मेरे शेर, शाबास! अब मूल विषय पर आ जाओ और बताओ कि ईद मिलादुन्नबी रजब उल अव्वल महीने की बारहवीं तारीख की जगह तेरहवीं तारीख को क्यों मनाते हैं?’’
शेखर ने टुथ पिक कचरापात्र में फेंकते हुए कहना प्रारंभ किया … ‘‘बात यह है कि ईद मिलादुन्नबी का त्यौहार मोहम्मद साहब के जीवनकाल में प्रारंभ नहीं हुआ बल्की उनके जन्म के 1018 वर्ष बाद सन 1588 ई0 में प्रारंभ हुआ जो ईसा मसीह के जन्मदिन क्रिसमिस और नवीं शताब्दी से पुरी के जगन्नाथ की शोभायात्रा की देखादेखी और प्रतिस्पर्धा में उस्मानिया साम्राज्य में ये त्यौंहार मनाना शुरू हुआ जो आज 14 अक्टूबर 1989 को 401 वर्ष हो गये। अब प्रश्न यह था कि मोहम्मद साहब के जन्म और मृत्यु की तिथि एक ही होने के कारण ख़ुशी और ग़म को एक साथ कैसे मनाया जावे इसलिये कुछ लोग इस दिन ख़ुशी नहीं मनाते बल्की इस दिन के स्थान पर दूसरे दिन खुशी मनाते हैं। इससे पूर्व ईद मिलादुन्नबी का त्यौहार मनाये जाने का कोई इतिहास नहीं है। ठीक उसी प्रकार जैसे बारहवीं शताब्दी में कुतुब उद दीन ऐबक से पहले ताज़िये निकाले जाने का इतिहास नहीं है। हां इसके बाद एक बहुत बड़ी प्रतिक्रिया स्वरूप मन्दिरों में स्थापित दूसरे भगवानों की शोभायात्राओं का एक क्रम शुरू हो गया। इन शोभायात्राओं पर भी समय का प्रभाव तो पड़ा किन्तु एक बड़ा अन्तर यह हुआ कि वे बड़े मन्दिर जिनके लियेे राज्य द्वारा उनके बन्दोबस्त के लियेे गांवों में जागीरें दी हुयी थी और पुण्यार्थ किये जाने वाले दान तथा श्रद्धालुओं द्वारा चढाई जाने वाली भेंट से जिनका आर्थिक स्तर चरम पर था, ऐसे मन्दिरों के भगवान की शोभायात्राएं तो दिनों दिन और अधिक भव्य होती गयी, साथ ही ऐसे छोटे मन्दिर जो कालान्तर में समृद्ध हो गये, उनकी भी पृथक् शोभायात्राएं प्रारम्भ हो गयीं और इनकी संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। अब एक कड़वा सत्य यह है कि, आज निकाली जाने वाली धार्मिक शोभायात्र, रथयात्राओं और जुलूस ए मोहम्मदी का आधार धार्मिक कम और धर्म व जातिगत आधारित गणशक्ति प्रदर्शन तथा धार्मिक अधिकार व स्वतंत्रता के नाम पर प्रतिष्ठा से संबद्ध होकर अन्ततोगत्वा राजनैतिक शक्तियों का ध्यानाकर्षण का प्रयास अधिक है। अब आज की घटना को ही ले लीजिये। आज का जुलूस ए मोहम्मदी अपनी संख्या शक्ति के प्रदर्शन का प्रपंच ही तो था।’’
शेखर की तथ्यात्मक प्रस्तुति ने सभी अतीथियों को अपने सम्मोहन वृत में ले लिया। खाना समाप्त हो कर टेबल साफ होने लगी थी लेकिन हम सब वहीं जमे रहे। लेकिन शेखर की स्पष्टवादिता से शराफ़त अली खां और शादाब क़ुरैशी ने कसमसा कर कहा … ‘‘अरे साहब, ये आप कैसे कह सकते हैं? वो तो शांतीपूर्ण तरीके से ही अपने नबी का पैग़ाम …!’’
शेखर की व्यंगात्मक भाव भंगिमा अब गम्भीरता में परिवर्तित हो चुकी थी। उन्होंने डाइनिंग टेबल पर दोनों हाथ रख कर सीधे बैठते हुए कहा … ‘‘हां ये शांतीपूर्ण तरीका आज से एक महीने पहले 14 सितंबर को सुबह के समय शुरू हुआ था जब श्रीनगर के चिंक्राल मोहल्ले के एक मकान के बाहर एक नन्हीं बच्ची रोते हुए खड़ी थी। मकान के बाहर के एक कमरे में टीका लाल टपलू नाम के वकील कुछ काम निपटा रहे थे। इसी बीच उन्होंने बच्ची के रोने की आवाज सुनी तो वे कमरे से बाहर निकले और अहाते से होते हुए उस बच्ची की मां से उसके रोने का कारण पूछा तो मां ने कहा कि स्कूल में जलसा होना है, इसे पैसे चाहिए लेकिन मेरे पास पैसे नहीं हैं। वकील टीका लाल टपलू ने जेब में हाथ डाला और पांच रुपये बच्ची के हाथ में रखकर उसका सिर सहला दिया। बच्ची शांत हुई ही थी कि सामने से कुछ हमलावर टीका लाल के करीब पहुंचे, बंदूक निकाली और जब तक कुछ समझ में आता उन्होंने गोली चला दी। हत्या का आरोप जम्मू-कश्मीर लिब्रेशन फ्रंट के आतंकियों पर है और ये वो संगठन है, जिसकी स्थापना आज से कुल सवा साल पहले 1988 के जुलाई महीने में हुई थी। हत्या का आरोप भले ही मीडिया की खबरों का हिस्सा बन गया है लेकिन सच ये है कि आरोपी अभी पकड़े नहीं गए हैं। आप को पता है कि जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के अलावा और कितने ऐसे आतंकवादी संगठन हैं?’’
शराफ़त अली खां ने समर्पण करते हुए कहा … ‘‘अजी साहब हम तो जंगल में फल, फूल, पत्तियों, चिड़ियों, नदी, नाले, झरने और तालाबों को संवारते और क़ुदरत की ख़िदमत करते हैं। हम कहां ….।’’
शराफ़त अली की बात पूरी होने से पहले ही शादाब क़ुरैषी ने विरोध करते हुए कहा … ‘‘वैसे साहब आप उन्हें टेररिस्ट क्यों कह रहे हैं वो तो मिलिटेंट हैं। टेररिस्ट लफ़्ज़ की अभी तक कोई पुख़्ता लफ़्ज़ी हद-बंदी तो हुई नहीं है।’’
शेखर ने निर्विकार भाव से शादाब क़ुरैशी की तरफ देखते हुए बोलना चाहा लेकिन राघव भैय्या ने बीच में शादाब क़ुरैशी को लक्ष्य कर के बोला … ‘‘ओहो क़ुरैशी साहब, आप छुरी को दाहिने से नहीं बाएं हाथ से चलाओ, कटेगा तो बकरा ही ना? और ये बीच में विषयांतर मत कीजिये आप!!’’
फिर शेखर की ओर देखते हुए बोले … ‘‘हां भाई शेखर, देखो यार ये शराफ़त अली खां तो जंगल में रहते हैं और हम बर्फीले पहाड़ों की सीमांत चोटियों पर नापाक और चीनी दुश्मनों से उलझे हुए इन खाड़कुओं से भी आमने-सामने दो-चार तो होते हैं लेकिन इन की इतनी जानकारी नहीं है। बताओ यार, बताओ। हां लेकिन यहां सब पढे़ लिखे हैं इसलिये टेररिस्ट और मिलिटेंट की अंतर व्याख्या में उलझ कर विषयांतर मत करना।’’
माधव भाई साहब के सेवादार सूखे मेवों से गार्निश किया हुआ केसर, इलायची, दालचीनी और गुलाब की पंखुड़ियों से बना कहवा परोस चुके थे। शेखर ने लंबी सांस से अपनी प्याली को सूंघ कर एक चुस्की ले कर कहना प्रारंभ किया … ‘‘धन्यवाद राघव साहब, तो अहवाल ये है सरलता से समझने के लिये हम इन्हें तीन श्रेणियों में बांट देते हैं। इनमें पहले प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन, हिज़्ब उल मुजाहिदीन, हरकत उल अंसार, लश्कर ए तोयबा, जैश ए मोहम्मद, अल बदर, जमीयत उल मुजाहिदीन, हरकत उल जेहाद अल इस्लाम, अल उमर मुजाहिदीन और दुख़्तरान ए मिल्लत है।’’
कहवे की चुस्की ले कर शेखर ने आगे बताया … ‘‘दूसरी श्रेणी में कार्यरत आतंकवादी संगठन लश्कर ए ओमर, लश्कर ए जब्बार, तहरीक उल मुजाहिदीन, जम्मू एंड कश्मीर लिबरेशन फ्रंट, ऑल पार्टीज हुर्रियत कॉन्फरेंस और मुताहिदा जेहाद काउन्सिल है।”
”तीसरी श्रेणी में सुप्त आतंकवादी संगठन अल बराक, अल जेहाद, जम्मू एंड कश्मीर नेशनल लिबरेशन आर्मी, मुस्लिम जांबाज़ फोर्स, कश्मीर जेहाद फोर्स, महाज़ ए आज़ादी, इस्लामी जमात ए तुल्बा, जम्मू एंड कश्मीर स्टूडेंट्स लिबरेशन फ्रंट, इख़्वान उन मुहाहिदीन, इस्लामिक स्टूडेंट्स लीग, तहरीक ए हुर्रियत ए कश्मीर, अल मुस्तफ़ा लिबरेशन फाइटर्स, तहरीक ए जेहाद ए इस्लामी, मुस्लिम मुहाहिदीन, अल मुजाहिद फोर्स, तहरीक ए जेहाद और इस्लामी इन्क़लाबी महाज़ हैं।’‘
कहवे की आखिरी घूंट ले कर शेखर बोले … ‘‘अब सत्य सुनने का साहस हो तो श्रीनगर के वकील टीका लाल टपलू की जम्मू कश्मीरर लिबरेशनन फ्रंट द्वारा की गयी हत्या की तरह बाकी संगठनों के कारनामे बताऊं? वैसे ये शुरूआत है, आगे देखिये क्या होता है।’’
शराफ़त अली खां और शादाब क़ुरैशी के लटके हुए चेहरों से ईद की चमक उतर चुकी थी और पकवानों की सुगंध गुलाबी ठण्ड़ी हवाओं में घुल कर दूर जा चुकी थी। नर्सरी से नीचे घाटी में घरों की खिडकियों से छन कर दिख रही स्थिर पीली रोषनी पेडों की पत्तियों से छनकर उड़ते हुए जुगनुओं से प्रतिस्पर्धा कर रही थी जो चौदहवीं के चांद की दूधिया चांदनी में दूध में केसर की तैरती हुई पत्तियों का आभास दे रहे थे। शेखर की चुप्पी से छाई निस्तब्धता को तोड़ते हुए शबाना बेग़म ने आंखें मटकाते हुए अपनी रेशमी आवाज़ में कहा … ‘‘छोड़िये ना भाईजान, बात कहां से कहां जा पहुंची। हमें तो रश्मि भाभी ने आपकी शोहरत एक शायर की बतायी थी। हम तो आप की शायरी सुनने आये थे।’’