मंदाकिनी पार्ट 7 / Mandakini part 7

तो आप ने अब तक पढा …
मां को उठते ही दो मिनट ईष ध्यान कर पानी पीने की आदत थी। उनके कमरे से निकलने में लगने वाले समय में मैंने जल्दी सी सीढियां उतर कर बाथरूम की लाइट आॅन की और वाष बेसिन पर हाथ धोने लगी। मां ने पूछा तो मैंने उनके लिये पूजा की तैयारी का बहाना बनाया। थोडी ही देर में अरूणोदय हो गया, मैंने मां को चाय बना कर दी राघव भैय्या व अंजली भाभी के लिये चाय की ट्रे ले कर छत पर गयी तो शेखर देहरादून की पहाडियों से छन कर आ रही अरूणिमा को सूर्य प्रणाम कर रहे थे।
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अब आगे।
मैंने और अंजली भाभी ने जल्दी जल्दी खाने की तैयारी कर नवरात्र पूजा के बाद सुबह का नाष्ता करते हुए पिकनिक की योजना पर बात कर रहे थे। राघव भैय्या टपकेष्वर से अधिक राॅबर्स केव में अधिक रूचि दर्षा रहे थे। शेखर के लिये तो दोनों स्थान नये थे। अंजली भाभी ने मां के समर्थन से निर्णय सुनाते हुए कहा कि टपकेष्वर दूर भी नहीं है और रास्ते में ही है तो क्यों ना महादेव के दर्षन से दिन का प्रारंभ करें। बाबूजी की आर्मी डिस्पोज़ल की विलीज़ जीप में हल्की नीली रंग की लेविस जीन्स पर नेवी ब्ल्यू कलकर की टी शर्ट और पर्थ फेल्ट केप के साथ रेबेन का एविएटर ग्रीन गोगल्स लगाये शेखर चालक सीट पर बैठे बहुत आकर्षक लग रहे थे। राघव भैय्या भी स्पोटर््स काॅलर की लाल चायना कट हाफ स्लीव वाली लाल रंग की शर्ट और ब्ल्यू जीन्स में फेल्ट केप के साथ पेंटो शेप का ब्लेक गोगल लगाये जंच रहे थे। अंजली भाभी ने परंपरागत पहाडी परिधान पहने और मुझे हमेंषा सलवार सूट ही अच्छा लगता था सो मैंने हल्के गुलाबी सूट पर थोडी सी गहरी चुन्नी ही डाली थी।
मीना को हमें रास्ते में उसके घर से लेना था क्योंकि रात को माधव भाई साहब के साथ चली गयी थी। हम नागेन्द्र काॅलाॅनी पहुंचे तो मीना के घर के बाहर काॅलाॅनी के बहुत से लोग एकत्रित थे। अनेक आषंकाओं का बोझ और चेहरे पर परेषानी लिये हम वहां पहुंचे तो पता लगा मीना की बहन डाॅली और भतीजे राहुल ने बताया कि मीना के घर में दो सांप देखे गये हैं और अभी एक सांप दरवाज़े पर दूसरा सांप दिख नहीं रहा है और मीना अपने कमरे में बंद है। राघव भैय्या और शेखर ने लोगों को समझाते हुए दूर हटने के लिये कहा। शेखर ने पेड से एक थोडी सी मजबूत टहनी तोड कर उसे अपने चाकू से साफ कर एक सिरे पर चीरा लगाया और लकडी का एक टुकडा उसमें फंसा कर वाई आकृति दी और बहुत आराम से सांप के पास जा कर उसे हिलने के लिये उकसाया। हम सब लोग दूर से सांसे रोक कर देख रहे थे और मैं मन ही मन देहरादून के सिद्धेष्वर, टपकेष्वर सहित सभी इक्कीस षिव मंदिरों में सर पटक रही थी। हमें जो दिख पा रहा था वो केवल यह कि शेखर दो तीन मिनट तक न मालूम क्या करते रहे और फिर वाई शेप के सिरे वाली डंडी से सांप के फन को दबाकर उसकी पूंछ पर पांव रखा और अपना हेट उतार कर सांप को आगे झुक कर अपने हेट में सांप को पकड लिया। लोगों की तालियों की आवाज़ से मेरी चेतना लौटी तब तक शेखर वो सांप राघव भैय्या को दे कर वापस मीना के घर में घुस चुके थे।
मैं फिर से जय सिद्धेष्वर जय टपकेष्वर बुदबुदा रही थी और राघव भैय्या ने एक थैला मंगवा कर सांप को उस थैले में डाल दिया। मीना के घर से डर और घबराहट भरी ‘षेखर’ ‘षेखर’ पुकारती आवाज़े आती रही और एक लंबी चीख ‘षेखर’ पुकार कर बंद हो गयी तो आसमान छा रही बदलियों के साथ आषंकाओं के बादल भी गहरा गये। थोडी देर बाद पसीने से तरबतर शेखर को बाएं हाथ में उसी तरह अपने हेट में सांप को पकडे हुए और दाएं कंधे पर मीना को लादे आते दिखे तो आषंकाओं की बदलियों में चमकती बिजली सब की आंखों में प्रष्न बन कर कौंध गयी और गडगडाहट में दबती होंठों से निकली आवाज़ ‘क्या हुआ’, ‘क्या हुआ’ पूछती रह गयी। राघव भैय्या ने आगे बढ कर उस सांप को भी थैले में डाल कर जीप में रख दिया। इधर शेखर ने मीना को उसके घर की लाॅन में लिटाते हुए बताया कि चिंता कि कोई बात नहीं थी, मीना केवल डर और घबराहट से अचेत हो गयी है। शेखर ने हाथ उठा कर पानी मांगा तो पता नहीं किसी बदली ने अपना दामन निचोडा या शेखर के माथे के पसीने की बूंदें मीना के चेहरे पर गिरी कि मीना ने डबडबाती आंखें खोली और कांपते होंठों से ‘षेखर’, ‘षेखर’ पुकारने लगी।
थोडी ही देर में सब सामान्य हो गया। लोग शेखर और राघव भैय्या की प्रषंसा करते हुए चले गये। मीना ने बताया कि कैसे एक अजीब सा सांप उसके बिस्तर पर आ गया था जिसके शरीर पर सांप जैसे चकते तो थे लेकिन चार पांव भी थे और फन नहीं था। ऐसे अजीब सांप को देख कर डर से उसने स्वयं को अलमारी में बंद कर लिया था। कैसे शेखर ने उसे पकडा और सांप की आक्रामकता से डर के कारण बेहोष अगले आधा घण्टे तक राघव और शेखर ने सुनिष्चित किया कि घर में कोई और सांप न हो, हमने मीना को एक बार तो पिकनिक रद्द कर देने की सलाह दी लेकिन डाॅली और राहुल के हठ के आगे किसी का नहीं चली। हम सब छोटी बाॅडी की विलीज़ में बैठ गये, शेखर फिर ड्राइविंग सीट पर और राघव भैय्या ने सांपों का थैला अपने आगे सीट के नीचे रखते हुए बडी चंचलता से कहा … ‘‘यार शेखर, ये तो पता नहीं कि ये कौन सा सांप है लेकिन आज तो रात की पार्टी की बढिया व्यवस्था हो गयी।’’
शेखर ने ड्राइव करते हुए कहा … ‘‘यानी तुम वो चीज भी खा लेते हो जिसे तुम जानते नहीं?’’
राघव भैय्या की चंचलता लुप्त हो गयी और वे चष्मा उतार कर शेखर की तरफ प्रष्नवाचक भाव से देख कर चुप हो गये। फिर थोडा गम्भीर हो कर बोले … ‘‘इस में भी कोई पेच है क्या?’’
तब शेखर ने कहा … ‘‘पेच की बात नहीं है लेकिन हम मनुष्यों ने केवल स्वाद के लिये जीवों को अपनी हिंसा का षिकार बना लिया कि जीवों की अनेक प्रजातियां दुर्लभ हो कर समाप्ति के कगार पर है और हमारी जिव्हा लोलुपता इतनी बढ गयी कि हम ने गौमांस के पक्ष में भी तर्क गढ लिये।’’
राघव भैय्या पर शेखर की बात का प्रभाव होने लगा था लेकिन उनकी जिव्हा लोलुपता ने तर्क करते हुए कहा … ‘‘यार तेरी बात तो समझ में आ रही है लेकिन ये सांप कौन सी प्रजाति का है? और क्या ये भी दुर्लभ है? तो फिर ये मीना के घर में आस्तीन के सांप की तरह कहां से आ गया?’’
हम सब के कान भी उधर ही लग गये थे। शेखर ने बहुत शांत भाव से थोडा सा मुस्कुराते हुए कहा … ‘‘एक साथ इतने सारे प्रष्न? तुम्हारे अकेले के हैं या कोई और भी ये जानना चाहता है?’’
निष्चित रूप से शेखर का लक्ष्य मीना थी। लेकिन मीना तो मीना थी जैसे सुराही में मदिरा होने पर भी वह अपनी मादकता का प्रदर्षन नहीं करती ऐसे ही अपने भाव छिपाते हुए बडी उदासीनता से बोली … ‘‘ हमें क्या हम तो षिक्षक हैं!! विद्यार्थियों के मन की कच्ची सलेट पर हम जो लिख देते हैं आने वाले समय का सत्य हो जाता है।’’
अब शेखर ने स्पष्ट लक्ष्य कर के कहा … ‘‘सत्य और समस्या से बचने का एक मात्र उपाय उनका सामना करना ही है। सत्य से यदि बच सकते हो तो अवष्य बचो किंतु यदि वह सामने आ जाए तो उससे टकराने की अपेक्षा उसे स्वीकार कर लो।’’
राघव भैय्या ने व्यंग से कहा … ‘‘हे स्वामी मेरा प्रष्न अनुत्तरित है, कृपया मुझे अनदेखा न करें।’’
शेखर ने उसी तर्ज पर कहा … ‘‘सुनो वत्स, अभी अभी जिस सर्पयुगल का आखेट हम ने किया है, वह पेंगोलिन है जिसे स्थानीय भाषा में सुल्लू सांप कहा जाता है जिसकी खाल केराटिन के शल्कों से बनी हो कर अकेला ऐसा जीव है जो सांप नहीं है फिर भी इसे सांप कहा जाता है। यह सांप रेंग कर नहीं बल्की अपने चार पांवों से चलता है। इतना ही नहीं इसके सांपों की तरह दांत नहीं होते क्योंकि यह एक स्तनपायी जीव है।’’
हमारा कौतुहल बढता जा रहा था क्योंकि ऐसे सांप के बारे में कभी नहीं सुना था जिसके दांत नहीं हों या जिसके पांव होते हों और जो स्तनपायी हों। मैंने अनुभव किया कि मीना और अंजली भाभी की इस सांप में रूची बढ गयी थी। अंजली भाभी ने कहा … ‘‘षेखर भैय्या पहली बार सुन रही हूं ऐसे सांप के बारे में! कहां मिलता है ये सांप और दुर्लभ कैसे हो गया?’’
शेखर ने किसी को भी लक्ष्य नहीं करते हुए अपना कथन जारी रखा … ‘‘पहाडी क्षेत्रों में पाया जाने वाला ये पेंगोलिन वस्तुतः डायनासोर का वंषज है जो अब लुप्त होने के कगार पर है। कारण कि इसका मांस लेमन ग्रास के साथ उबाल कर या फ्राई कर के खाया जाता है और इसकी खाल से शक्तिवर्धक दवाई और बुलेटप्रूफ जैकेट बनती है। कैराटिन से बने इसके शल्क व नाखून इतने सख्त होते हैं कि शेर के दांत भी इनके आर-पार नहीं हो सकते और इतने तीखे होते हैं कि अनुभवहीन इन से चोटिल हो सकता है। इसी कारण इस की अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में भारी मांग है और यह बहुत मूल्यवान जीव है। अंतिम बात यह कि ऐसा शक्तिषाली हो कर भी आपत्ति आने पर यह स्वयं को एक गेंद की तरह समेट लेता है तो इसे सीधा कर पाना बहुत कठिन होता है। अब बताओ राघव, क्या ऐसे जीवों को मारना उचित है?
राघव भैय्या ने योग्यतम की उत्तरजीविता के सिद्धांत को मुखरित रूप से उद्धृत करते हुए कहा … ‘‘यार ये तो सर्वाइवल आॅफ द फिटेस्ट की बात है। जो योग्यतम होगा वो ही जीवित रहेगा। डायनासोर शक्तिषाली होने पर भी समाप्त हो गये। अर्थात शक्ति और योग्यता दोनों अलग बात है। मानव शक्ति में डायनासोर से कम होने पर भी जीवन के योग्य होने से आज भी अस्तित्व में है डायनासोर नहीं है।’’
विलीज़ टपकेष्वर महादेव मंदिर मार्ग के घुमावदार रास्तों पर आ गयी थी। मीना के घर से निकले सांपों की चर्चा भी ऐसे ही मोड पर आ कर योग्यतम की उत्तरजीविता पर आ गयी थी। शेखर ने बहुत संतुलित ड्राईविंग करते हुए सांपों की चर्चा को भी पर्यावरणीय संतुलन पर बात घुमाते हुए कहा …. ‘‘सर्वाइवल का अर्थ ये तो नहीं कि आवष्यकता नहीं होने पर भी वन्य जीवों की हत्या की जाए। जंगल में जब तक फल, फूल, पत्तियां, कंद, मूल मिलते हों तब तक जीव हत्या नहीं करनी चाहिये। और इन चीजों की जंगल में कभी कमी नहीं होती, आवष्यकता केवल आप को जानकारी होने की है।’’
राघव भैय्या ने समर्पण करते हुए कहा … ‘‘यार शेखर, कल से अगले पन्द्रह दिन तक हमारी तो जंगल में सर्वाइवल ट्रेनिंग है, तुम्हारी मार्षल आर्ट ट्रेनिंग में कोई जंगल ट्रेनिंग का काॅलम नहीं है क्या? कितना आनंद आये अगर तुम्हारे जैसा मित्र मेरा बॅडी हो।’’
शेखर ने बताया ‘‘सर्वाइवल तो नहीं लेकिन रात में पानी के अंदर युद्ध का अभ्यास है, अब मसूरी में रात को पडने वाली ठंड और जंगल में जोंक से लडते हुए पानी में युद्ध का अभ्यास आस्तीन के सांपों से लडने से ज़्यादा कठिन है। अरे हां, अब किसी को ये जानना हो कि आस्तीन के सांप किस तरह घर में कैसे आ गये तो हुंकारा तो देना पडेगा।’’
हुंकारा देने के संवाद का संकेत स्पष्ट रूप से मीना के लिये था लेकिन मीना कुछ नहीं बोली तो राहुल ने बालसुलभ मासूमियत के साथ शेखर से कहा … ‘‘षेखर अंकल हमारी बुक में एक कहानी है जिसमें चोबोली नाम की एक राजकुमारी कहती है कि वो ऐसे व्यक्ति से विवाह करेगी जो उसे एक दिन में चार बार बोलने पर विवष कर दे। मीना बुआ भी वो ही चोबोली राजकुमारी है।’’
राघव भैय्या ने राहुल की बात काटते हुए कहा … ‘‘बोलेगी बेटा बोलेगी, चोबोली राजकुमारी बोलेगी।’’
डाॅली ने मीना को झिंझोडते हुए कहा … ‘‘बोलो न दीदी, आखिर पता तो लगे हमारे घर में सांप कैसे घुस आया?’’
मीना ने हारी हुई नायिका की तरह कहा … ‘‘अब बता भी दीजिये ना!!’’
शेखर ने नितांत भावषून्यता से पूछा … ‘‘अच्छा ये बताओ, आप के घर में कहीं चींटियां हैं?’’
हम सब शेखर के इस प्रष्न से अधिक मीना की स्वीकारोक्ति से आष्चर्यचकित थे कि मीना ने स्वीकारते हुए कहा … ‘‘हां, घर के पीछे किचन गार्डन के एक कोने में मां और बाबूजी ने चींटियों को आटा डालने का एक स्थान नियत किया हुआ है जहां रोजाना नियमपूर्वक बचे हुए पिलोथन के आटे का कीडी नगरा डालते हैं।’’
शेखर ने बिना भूमिका के कहा … ‘‘बस यही है आप के प्रष्न का उत्तर। लेकिन तुम्हारे प्रष्न का उत्तर देने से पहले मेरा एक प्रष्न है। आप कीडी नगरा किसे कहते हो?
उत्तर अंजली भाभी ने दिया … ‘‘चींटियों को खाने के लिये जो आटा डालते हैं उसे बोलचाल में कीडी नगरा डालना कहते हैं।’’
शेखर तो जैसे किसी बात को भूलते ही नहीं थे। उन्होंने मीना के षिक्षकों द्वारा बच्चों के मन की सलेट पर अंकित कर दिये जाने वाले ज्ञान को ही आने वाली पीढियों के लिये सत्य को इंगित करते हुए कहा … ‘‘अर्थात आप के मन की सलेट पर भी किसी षिक्षक ने जो लिख दिया वही आप का सत्य हो गया?’’
मैंने देखा मीना थोडी असहज हो गयी थी आखिर शेखर ने कितनी सरलता से उसकी गर्वोक्ति का खंडित कर दिया था। हमारे लिये एक नये विस्मय का विषय था तो अंजली भाभी भी अपने उत्तर के मनोवैज्ञानिक सत्य को झुठलाते देख कर विस्मित थी लेकिन मनोवैज्ञानिक व्यंग करते हुए पूछा … ‘‘क्या कीडी नगरे पर भी कोई पीएचडी कर रखी है?’’
टपकेष्वर महादेव के मार्ग पर अंतिम मोड पर मुडते हुए शेखर बोलने को उद्यत हुए तो डाॅली ने खीझते हुए कहा … ‘‘भाभी एक बात तो पूरी हो जाने दो, मुझे घर में सांप घुस आने का कारण जानना है और आप कीडी नगरा डालने लग गयी।’’
मीना ने प्रषंसा से डाॅली की तरफ देखा और राघव भैय्या ने ताली बजा कर जयकारा लगाते हुए कहा … लौट आओ लौट आओ हे शेखर स्वामी आप भटकते फिरते हो और दूसरों को भी भटका देते हो। आप कीडी नगरा बाद में डालना पहले इस बालिका और हमारी जिज्ञासा शांत करो कि घर में सांप कैसे घुस आया?’’
मीना ने धीरे से राघव भैय्या के कंधे पर हाथ रख कर आभार जताया जो शेखर की दृष्टि से छिप न सका। शेखर ने मुस्कुराते हुए कहा … ‘‘तो सुनो भक्तों, पेंगोलिन का सबसे प्रिय भोजन दीमक, चींटियां और चींटियों के अंडे हैं। अब आस्तीन खोल कर सांपों को बुलाओगी तो सांप तो आएंगे ही।’’
बहुत सहजता से किये इस व्यंग पर मीना भी हंस पडी। मौसम बहुत सुहावना हो गया था। मैंने अनुभव किया कि शेखर रास्ते में इधर उधर देखते हुए कुछ ढूंढने का प्रयास कर रहे थे। फुहारों के साथ देहरादून की सडकों पर रेंगती हुई विलीज़ पानी पर मंथर गति से तैरती हुई नाव की तरह चल रही थी। डाॅली और राहुल चहकते हुए कभी शेखर और कभी राघव से सांपों के बारे में सवाल पूछने लगे तो मीना ने झल्ला कर कहा … ‘‘अब सांपों की दुनियां से बाहर भी निकलो, नहीं तो सपनों में भी सांप ही दिखेंगे।’’
एक बार ठहाका लगा जो टपकेष्वर महादेव मंदिर की पार्किंग के सामने ही रूका। सब ने अपना अपना सामान पकडा और मंदिर दर्षन के बाद डाॅली व राहुल ने भूख लगने का संकेत किया क्योंकि घर में सांप की आपाधापी में उन्होंने सुबह से कुछ खाया नहीं था। नवरात्र के कारण भीड होने पर भी हमें एक अच्छी जगह मिल गयी जहां प्राचीन तमसा नदी की एक धारा जो अब एक बरसाती टोंस नदी बन कर रह गयी है। हम खाना निकालने लगे तो शेखर ने रास्तें में कहीं युक्लिप्टिस के पेड नहीं होने की बात कहते हुए आस पास कहीं युक्लिप्टिस के पेडों बाबत पूछा जिस पर मीना ने अपना ज्ञान बताते हुए कहा …‘‘किसी एग्रो कंपनी ने इस क्षेत्र में पांच से दस साल की एक योजना के तहत किसानों को अपने खेतों की सीमा पर युक्लिप्टिस के पेड लगवाए थे लेकिन उन पेडों के कारण भूमि की उर्वरता समाप्त हो कर भू जलस्तर नीचे चला गया। इसलिये युक्लिप्टिस के पेड काट दिये गये। हां कुछ पेड यहां से पास ही एक खेत में लगे हैं लेकिन आप को क्या उसके पत्तों को सूंघ कर सुगंध लेनी है? कहें तो कुछ पत्ते तोड लाएं?’’
शेखर ने कहा … ‘‘अभी तो मुझे खाने की सुगंध आ रही है लेकिन अपने साथ लाये हुए आस्तीन के सुल्लू सांपों को भी तो खाना खिलाना है, अन्यथा भगवान षिव के घर में आ कर उनके आभूषण भूखे रहेंगे तो रात को सपने में आ जाएंगे।’’
अब अंजली भाभी ने प्रष्न किया … ‘‘तो इनका युक्लिप्टिस से क्या संबंध है?’’
शेखर ने कहा … ‘‘अब यहां आस पास तो कहीं चींटियां और दीमक मिलेगी नहीं, युक्लिप्टिस दीमक का प्रिय भोजन है तो बस, वहीं इन आस्तीन के सांपों केा भी भोजन मिल जाएगा। याद रहे कि सब के जीवन का एक लक्ष्य है, आज तुम्हारे कारण इनका लक्ष्य बाधित हो कर इन्हें बहुत देर इस बंधन में रहना पडा, अब पुण्य कमाओ और इन्हें वहां अपने हाथों से बंधनरहित कर मुक्त कर आओ।’’
मैं अवाक् थी और संभवतः मीना की आंखों में भी सिद्धेष्वर मंदिर के उस मायावी योगी का अक्स और हूबहू वही शब्द गूंज रहे थे जो मैंने मीना से भी साझा किये थे। मीना भी कम वाक्पटू नहीं थी। शेखर के संकेत को समझते हुए पलटवार कर बोली … ‘‘इन्हें बंदी बनाने में आप की भूमिका भी साझेदार की रही है। चलिये इन्हें बंधनमुक्त करने में भी अपनी साझेदारी निभाईये।’’
मीना ने शेखर को अपने शब्दकुम्भ में उतार लिया था और शेखर के पास कोई उपाय नहीं था। बडे टूटे मन से कहा … ‘‘चलिये, भूले से गाय खाई, अब खाएं तो राम दुहाई, लेकिन ये तो वनक्षेत्र है ना? हम इन्हें यहां ही छोड देते हैं। दीमक के पास ये अपने आप चले जाएंगे।’’
यह निष्चय हो जाने पर मीना ने थैले को पकडा और शेखर ने एक एक कर दोनों पेंगोलिन को थैले से निकाल कर भूमि पर रखा और मीना से कहा कि वह हाथ जोडकर दोनों को प्रस्थान करने का निवेदन करे। मीना का डर समाप्त हो चुका था तो उसने एक पेंगोलिन को छू कर देखना चाहा और यहीं गलती हो गयी। पेंगोलिन अपने मूल आकार में तेजी से आया तो शेखर ने मीना का हाथ तेजी से खींच कर हटाया लेकिन स्वयं को पेंगोलिन की तेजी से खुलने वाली पूंछ के रेंज से नहीं बचा सके और उनके बाएं हाथ में पेंगोलिन के शल्कों से गहरा कटाव आ गया।
मीना भौचक्की रह गयी थी और हम सब भी एक बार के लिये घबरा गये लेकिन शेखर ने हंसते हुए कहा … ‘‘ये बंधन से मुक्ति की पीडा है जो पुनः बंधन में बंधना चाहती है।’’
मीना ने रूआंसा होते हुए कहा ‘‘लेकिन मेरे पास तो बांधने के लिये कुछ भी नहीं है।’’
शेखर ने मीना की आंखों में देखते हुए कहा … ‘‘लेकिन ज़ख़्म इतने गहरे भी नहीं कि सीने के लिये आंसुओं के धागे व्यर्थ किये जाएं।’’
मैंने अपनी एक मात्र चुन्नी से घाव पर पट्टी बांधते हुए कहा … ‘‘ आप गम्भीर परिस्थिति में भी गम्भीर नहीं होते लेकिन वैसे आप बहुत गम्भीर और समझ में नहीं आने वाले हैं। बारिषों का मौसम है, साधारण घाव को गम्भीर होने में क्या देर लगती है।’’
मीना ने मेरी तरफ कृतज्ञता के भाव से देखा और बिना कुछ कहे बहुत कुछ कह दिया। सरकती जा रही घडी की सूईयों के साथ खाना खाते हुए राघव भैय्या और अंजली भाभी ने आगे की योजना पर बातें की, डाॅली और राहुल तो शेखर अंकल से ये सवाल और वो सवाल करते रहे। मीना और मैं फोटोग्राफी के स्थान चिन्हित करने के बहाने एक तरफ आ गये तो मीना ने मुझसे पूछा कि मैंने शेखर से स्पष्ट बात की या नहीं? मैंने निराषा से नकारात्मक उत्तर दिया तो मीना में राॅबर्स केव में मिलने वाले संभावित अवसर को नहीं चूकने की हिदायत दी।
फोटोग्राफी के बाद एक बार पुनः विलीज़ टपकेष्वर से राॅबर्स केव के रास्तों पर चल पडी। ना नुकर के बाद इस बार ड्राइव राघव भैया कर रहे थे शेखर आगे की सीट पर बैठे थे।
थोडी देर बाद सब सामान्य हुआ तो अंजली भाभी ने बात छेडी … ‘‘षेखर भैया, अब तो कोई व्यवधान नहीं है, वो कीडी नगरे वाली बात अब तो बता दो।’’
डाॅली और राहुल बिलबिला पडे … ‘‘हां हां अंकल, बताओ ना बताओ बताओ।’’
शेखर ने आधा दाहिने घुम कर पीछे देखते हुए कहा … ‘‘अरे हां भाभी वो कोई लंबी चौडी बात नहीं है बस, किसी ने कच्ची सलेट पर लिख दिया तो कीडियों के घर तक दया भाव से पहंुचाया जाने वाला खाना ही आज कीडी नगरे के नाम से स्थापित हो गया। जबकि जिस स्थान पर कीडियां यानी चींटियां होती है उस जगह को खोदा जाए तो नगर के रूप में बसी हुई पूरी एक दुनिया के दर्षन होंगे। जहां उनके खाने के भण्डार अलग, अण्डों की जगह अलग, श्रमिक चींटियों के घर अलग, रानी चींटी का घर अलग।‘‘
‘‘अब ये शोध का विषय है कि पुण्य कमाने के लिये धार्मिक भावना से चींटियों के लिये प्रारंभ किया अन्नदान कब कीडी नगरा की संज्ञा से चलन में आया। लेकिन पुण्य कमाने के फेर में हम पाप अर्जित कर रहे हैं ये कोई नहीं समझ पा रहा।’’
अंजली भाभी सहित हम सभी का दृष्टिविस्तार के साथ दृष्टिकोण भी बदलने लगा था। नेतृत्व संभाले अंजली भाभी ने कहा … ‘‘कीडी नगर और अन्नदान का कीडी नगरा बन जाना समझ में आ गया किंतु चींटियों को अन्नदान कर के पुण्य के स्थान पर पाप अर्जित करने की बात समझ में नहीं आई।’’
शेखर ने स्पष्ट करते हुए समझा कर कहा … ‘‘वो ऐसे कि चींटियों को अन्नदान के नाम पर डाला जाने वाला कीडी नगरा या तो सार्वजनिक मार्ग पर डाला जाता है, या किसी पेड की जड में या किसी मकान की दीवारो या नींव में डाला जाता है। अब इन स्थानों पर या तो चींटियों का मरण है या उनके द्वारा खोखला कर दिये जाने के कारण पेड का मरण है या उस मकान का मरण है।’’
हम सब की सहमति को शेखर के तर्कों का वृत लीलता जा रहा था। लेकिन अब भी कमान पूरी तरह से अंजली भाभी ने संभाल रखी थी। अंतिम तो नहीं किंतु हम सब की तरफ से एक यक्ष प्रष्न पूछा … ‘‘तो फिर चींटियों को कीडी नगरा? मेरा आषय है कि अन्नदान कहां करें?’’
संभवतः शेखर हमें यही बताना चाह रहे थे। वे हंसते हुए बोले … ‘‘ये हुआ लाख टके का प्रष्न। संक्षिप्त उत्तर है, एकांत में। और विस्तारित उत्तर है ऐसा स्थान जो ऊंचाई पर हो, निर्जन हो जिससे कि बारिष में उनके घर में पानी न भरे और लोगों के आने जाने से उनका जीवन संकट में न पडे। और सबसे बडी बात ये कि एक विषेष विधि अनुसार केवल रात में चींटियों के लिये अन्नदान किया जाए।’’
अंजली भाभी के तो जैसे प्रष्न ही समाप्त हो गये लेकिन मीना की उत्सुकता ने चोबोली राजकुमारी को बोलने पर विवष कर दिया। आंखों को संकुचित करते हुए कहा … ‘‘आप की किसी का अंत भी होता है या नहीं? केले के पत्ते में से पत्ते की तरह चलने वाली रिले रेस कभी रूकेगी या नहीं ये तो पता नहीं लेकिन अब ये चींटियों के लिये केवल रात में अन्नदान की विषेष विधि भी बता ही दीजिये।’’
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क्या मीना के प्रश्न का उत्तर आप जानते हैं? नहीं तो पूछिये ना आप भी पूछिये …

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मंदाकिनी पार्ट 8 / Mandakini part 8

प्रस्तुत करते हुए उन मित्रों को टेग करना चाहता हूं जिन्होंने चींटियों को ‘कीडी नगरा’ डालने की विधि जानने की जिज्ञासा प्रकट की है। 000

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