मंदाकिनी पार्ट 26

मंदाकिनी पार्ट 26
मंदाकिनी का ये भाग मेरे जासूसी जीवन में गुप्त सांकेतिक भाषा और सायफ़र कोड़—डिकोड़ का एक छोटा सा दृष्टांत है। हालांकि कॉमर्स का विद्यार्थी होने से सायफ़र शब्द से पहला परिचय तो नौवीं कक्षा में कॉमर्शियल प्रेक्टिस नाम की किताब के आरंभिक अध्याय में व्यापारियों के मध्य भेजे जाने वाले संवाद व्यवहार से हो गया था लेकिन उसकी जड़ें कहीं सड़क के किनारे अपने जमूरे पर काला कपड़ा डाल कर एक जादुई अंगूठी का कमाल दिखाने वाले फुटपाथी जादूगर से सीख लिया था जो आगे एयरफोर्स के 32 विंग जोधपुर में एक प्रशिक्षण के दौरान फाइबर सिग्नल्स सीखने के साथ पुलिस की वायरलेस शाखा की आधारभूत कार्यप्रणाली और अंततोगत्वा जासूसी के व्यावहारिक क्रियाकलापों के दौरान अपने पूर्ण विकसित रूप में जानने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
आज तो सैंकडों सायफ़र कोड़ विधियां डिकोड़ की जा चुकी हैं मैं इस एपिसोड़ में बहुत साधारण गुप्त संवाद प्रस्तुत कर रहा हूं। हालांकि मंदाकिनी के इस एपिसोड़ में नाटकीयता की बात अपनी जगह मिथ्या है लेकिन विश्वास करें वर्ष 1989 में मसूरी प्रवास के दौरान ऐसा हुआ था। आप कहानी का आनंद लें।
अब तक आप ने पढ़ा …
मेरे लिये ये जानकारी नितांत नयी थी जिसे मैं स्कूल में मीना सहित मेरी दूसरे सहयोगियों पर प्रभाव जमाने के लिये प्रयोग करने की योजना बना रही थी लेकिन शेखर ने बात जारी रखते हुए कहा … ‘‘कितने संयोग की बात है ना कि हम जॉर्ज एवरेस्ट की तपस्थली पर हैं, दो बजने वाले हैं और देखो मौसम खराब हो रहा है।’’
और वास्तव में हवा तेज हो कर बारिष की फुहारों ने जॉर्ज एवरेस्ट हाउस को नहलाना शुरू कर दिया। हमारी पास बारिष से बचने के लिये कुछ नहीं था लेकिन शेखर ने अपने हेवरसेक से एक विंडचीटर निकाल कर मुझे दी और एक पानी पल्ला नाम की छह गुणा तीन फिट की दरी चांदनी को देते हुए उसे ओढ़ लेने को कहा। एक मंकीकेप निकाल कर नागेष परसारा को दी और ख़ुद ड्राइविंग सीट पर बैठ कर जीप स्टार्ट कर हाथी पांव की ओर चल पड़े। रास्ते का बांकापन शेखर की बेहद सधी हुई ड्राईविंग के सामने नतमस्तक था और नटखट चुलबुली चांदनी की अठखेलियां पानी पल्ले को दोनों हाथों से संभालने में व्यस्त थी। बारिष से भीगते-बचते और हवा से लड़ते हुए कब हाथी पांव चौराहा आ गया पता ही नहीं चला। हां विंडचीटर पहने हुए मैं थोड़ी सुविधापूर्वक होने से देख पा रही थी कि हमारे पीछे फिएट पर आने वाले चार लोग भी हमारी तरह बारिष और हवा से बचना चाह रहे थे।
हाथी पांव चौराहे पर पहुंचे तो नागेष परसारा ने शेखर को कुछ देर रूक उनके कपड़े सूखने तक चाय-कॉफी पीने को कहा। एक रेस्टोरेंट में मैं और चांदनी एक कोने में बैठ कर गर्म कॉफ़ी की चुस्कियां लेते हुए बात कर रही थी तो शेखर और नागेष परसारा भट्टी के पास चाय पीते हुए आग ताप रहे थे।
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अब आगे …
कॉफ़ी पीते हुए चांदनी अपनी मस्ती में न मालूम क्या-क्या कह रही थी लेकिन मेरा ध्यान तो शेखर की ओर से हट ही नहीं रहा था। मैं सोच रही थी अब नागेष परसारा से पीछा छूटेगा तो मैं चांदनी को किसी बहाने से दूर कर दूंगी और शेखर से हमारे बारे में बात करूंगी। मेरा सारा ध्यान शेखर और मेरी योजना की तरफ था तब मैंने देखा कि जॉर्ज एवरेस्ट हाउस से फिएट कार में जो लोग हमारे पीछे आ रहे थे वे भी भट्टी के पास आ कर नागेष परसारा और शेखर से बतियाने लगे।
चांदनी की बक-बक से बचते हुए जो शब्द मेरे कान तक पहुंचे वे बता रहे थे कि शेखर और नागेष परसारा में कार्ट मैंकेंजी रोड़ पर नाग मंदिर के रास्ते को ले कर बात हो रही थी जिसमें वे चारों भी भाग ले रहे थे। थोडी ही देर में आधी चाय पी कर वे चारों वहां से चले गये। भट्टी तापने से शेखर और नागेष परसारा कुछ राहत अनुभव की तो हमारे पास आ कर बैठ गये और तब नागेष परसारा ने मुझसे क्षमा मांगते हुए कहा … ‘‘मैं आप लोगों के लिये कोई विषेष प्रबंध नहीं कर सका। माधव साहब को पता लगेगा तो वो न मालूम क्या सोचेंगे? मुझे पहले सूचना होती तो …!
चांदनी तो जैसे नागेष परसारा से कोई शत्रुता निकाल रही थी। तपाक से उनकी बात काटते हुए बोली … ‘‘तो क्या तम्बू लगवा कर नाच-गाना करवाते। वो तो शांम को लखवाड़ में आ जाना और शेखर हजूर की कविताओं पर आप भी नाच लेना। हम भी तो देखें कि जंगल में रहते-रहते कोई अपनी परंपरा को कितना याद रख पाया।’’
नागेष ने पहली बार चांदनी को पलट कर बहुत हास्यपूर्वक कहा … ‘‘ये सूचना है, चुनौती है या आमंत्रण?’’
नागेष परसारा के इस बहुअर्थी उत्तर पर मैं और शेखर हंस पड़े लेकिन चांदनी का चेहरा झेंप के कारण देखने लायक था। शायद वो पहली बार निरूत्तर हुई थी। उत्तर देने की बारी मेरी थी तो मैंने कहा … ‘‘अरे हां, आप भी आईये ना, वहीं माधव भाईसाहब से भी आप की भेंट हो जाएगी।’’
नागेष परसारा ने खिन्न मन से असमर्थता जताते हुए कहा … ‘‘लेकिन मैं बिना अनुमती का अपने क्षेत्र को नहीं छोड़ सकता। वैसे भी अभी …।’’
इस बार शेखर ने नागेष को टोक कर उनकी बात पूरी करते हुए परामर्ष दिया … ‘‘वैसे भी अभी आप वन्यजीवों की गणना के अभियान में व्यस्त हैं। लेकिन रात में तो वन्यजीवों की गणना नहीं होती। और फिर क्यों भूल रहे हैं कि अरूणिमा की उपस्थिती आप की अनुमती की प्रतिभूती है। फिर भी कोई कमी रही तो मैं संभाल लूंगा। आप को चांदनी की सूचना में नाचने की चुनौती को आव्हान के अवसर में बदलने का इससे अच्छा और उपयुक्त समय नहीं मिलेगा।’’
नागेष परसारा के चेहरे पर शेखर के प्रति कृतज्ञता के भाव आने का मैं कोई कारण नहीं समझ पायी लेकिन शेखर ने चांदनी की ओर आष्वस्त करने के भाव से देखा तो चांदनी के चेहरे की गुलाबी हो गयी रंगत को मैंने मौसम में बढ़ती ठण्ड़क का प्रभाव ही समझा। नागेश परसारा का सहायक उनकी गाड़ी ले कर आ चुका था, हम चाय-कॉफ़ी पी कर ताज़ा दम हो चुके थे और आधा घंटे की बारिष से मौसम में ठंड़क ने अपने पांव पसार लिये थे।
चलते-चलते शेखर ने मुझे लक्षित करते हुए नागेष परसारा को कहा … ‘‘वैसे यहां से दो-तीन किलोमीटर दूर ही कम्पनी गार्ड़न तक तो आप का क्षेत्राधिकार है। वहां तक कम्पनी देने के लिये आप को माधव साहब की अनुमती के लिये अरूणिमा की प्रतिभूती की भी आवष्यकता नहीं है।’’
शेखर के मेरे प्रति इस व्यंग से अधिक उनके इस अप्रत्याषित प्रस्ताव से मैं विचलित हुई क्योंकि यह मेरी योजना को विलंबित करने वाला था। वहीं नागेष परसारा ने भी आष्चर्य जताते हुए कहा … ‘‘लेकिन आप का कार्यक्रम तो कार्ट मैंकेंजी रोड़ से नाग मंदिर होते हुए झूला हाउस जाने का था!!’’
शेखर ने रहस्यमयी मुस्कान के साथ उत्तर दिया … ‘‘जाने का नहीं किसी को भेजने का!!! और मैंने उनको वहां भेज दिया।’’
नागेश परसारा ने और भी आष्चर्य से पूछते हुए कहा … ‘‘आप की हर बात में रहस्य होता है, आप बहुत रहस्यमयी हो! स्पष्ट बताईये ना किस को भेज दिया?’’
शेखर ने उत्तर देते हुए कहा … ‘‘आप आईये ना!! फिर बताता हूं।’’
नागेश परसारा ने अपने सहायक को गाड़ी कम्पनी गार्ड़न ले आने को कहा और शेखर के साथ आगे की सीट पर बैठ गये। रास्ते में शेखर ने कहा … ‘‘वो चारों जो हमारे पीछे जॉर्ज एवरेस्ट हाउस से आ रहे थे, दर अस्ल वो वहां हमारी प्रतीक्षा कर रहे थे। जॉर्ज एवरेस्ट हाउस के पास आज शरद पूर्णिमा के दिन फेंके गये हड्डियों और बोटियों के ताज़ा अवषेष बता रहे थे कि वे चारों यहां के स्थानीय लोग नहीं हैं क्योंकि कोई भी परंपरागत हिंदू और विषेषतः पहाड़ी लोग आज के दिन मांसाहार नहीं करेगा। दूसरी बात ये कि फेंके गये खाने के अवषेष के साथ उर्दू अखबार का एक फटा हुआ टुकड़ा, जो शायद उस अखबार का मुखपृष्ठ था, चीख-चीख कर कह रहा था कि वे कष्मीरी हैं क्योंकि अखबार पर बडे अक्षरों में ‘कष्मीर … मा’ लिखा था जो कष्मीर में छपने वाला उर्दू अख़बार ‘कष्मीर उज़मा’ या ‘कष्मीर आज़मा’ या ‘कष्मीर आसमा’ हो सकता है। इसे मसूरी में घटित कल ईद मिलाद्दुनबी की घटना से जोड़ कर देखें तो ये लोग जम्मू कष्मीर लिबरेषन फ़्रंट के घटक हो सकते हैं और …।’’
शेखर के पुलिस अनुभव आधारित तथ्यों की पड़ताल से अचंभित नागेष परसारा ने बीच में टोकते हुए शेखर से पूछा … ‘‘तो फिर आप ने उन्हें जाने क्यों दिया? उन्हें तो पुलिस के …।’’
अब शेखर ने नागेष की बात काटते हुए कहा … ‘‘दो कारण हैं। पहला यह कि आज का उनका लक्ष्य हम थे। जॉर्ज एवरेस्ट हाउस में वो हमारी ही प्रतीक्षा कर रहे थे लेकिन हमारे कार्यक्रम का हिस्सा नहीं होने पर भी आप हमें मिले और क्लाउड एंड रिसॉर्ट में पुनः कार्यक्रम का हिस्सा न होने पर भी खाना खाने में लगने वाले समय के कारण हम जॉर्ज एवरेस्ट हाउस देर से पहुंचे। हमें नहीं आता देख कर वे एवरेस्ट पीक पर चले गये। फिर हमें वहां पहुंचा देखकर जल्दी-जल्दी उतरने लगे तो दो महिलाओं के साथ होने के कारण केवल सुरक्षा के लिये मैंने वहां से जल्दी हटने का निर्णय लिया। दूसरा कारण यह कि यहां उनके विरूद्ध कुछ भी कार्यवाही होने पर उनके समुदाय के लोग उनके बचाव में आ जाते और यहां कानून-व्यवस्था की स्थिती उत्पन्न होने के साथ कल के समाचार पत्रों में अरूणिमा और चांदनी को ले कर हमारी कहानियां छप जाती।’’
हाथी पांव से खनिज नगर की ऊंची-नीची घाटियां चढ़ते-उतरते मसूरी के मालरोड़ होते हुए हम कम्पनी गार्ड़न के आधे रास्ते तक पहुंच गये थे। हमारे दाहिनी तरफ संत गुरू नानकदेव स्कूल का भव्य परिसर दिख रहा था। चांदनी बहुत गम्भीरता से शेखर और नागेष परसारा की बातें सुन रही थी जहां नागेष शेखर से पूछ रहे थे … ‘‘आप रहस्य को और गहरा कर रहे हैं और मैं यह थाह पाने का प्रयास कर रहा हूं कि उन्हें नाग मंदिर का बोल कर हम कम्पनी गार्ड़न क्यों जा रहे हैं? आप कैसे कह रहे हैं कि उनका लक्ष्य हम थे?’’
सामने बरसात से टूटी-फूटी सड़क के खड्डों से बचाकर शेखर ने बहुत आत्मविष्वास से गाड़ी चलाते हुए कहा … ‘‘नागेष परसारा साहब, लड़ाई हमेषां आमने-सामने लड़कर ही नहीं बल्की उससे बचकर भी जीती जाती है जैसे विकल्प नहीं होने पर इन खड़्डों में उतर कर भी हम रास्ता तो पार कर लेंगे लेकिन हम हमारे साथ कोमलांगी अरूणिमा और चांदनी को तो इस कठिनाई से बचाने का प्रयास करेंगे ही ना? प्रष्न रहा कि हम उनका लक्ष्य कैसे थे? तो आप नहीं बल्की मैं किसी बेअदब कुरेषी की शराफ़त का लक्ष्य हूं।’’
बेअदब कुरेषी और शराफ़त शब्दों से मेरी और चांदनी की आंखों में कल रात ईद मिलादुन्नबी की दावत में शादाब कुरेषी और शराफ़त अली से शेखर की नोक-झोंक के दृष्य घूम गये। मैं शेखर की प्रज्ञा, मानसिक सतर्कता और मेरे व चांदनी के सम्मान के प्रति इतनी गम्भीर सोच का आंकलन कर रही थी लेकिन कल रात के उस घटनाक्रम से अपरिचित नागेष परसारा ने उत्सुकता मिश्रित झुंझलाहट के साथ अधिक गम्भीर हो कर पूछा से कहा … ‘‘कर दी ना फिर गोलमोल बात!! आप बहुत रहस्यवादी हैं, अब आप रहस्य रखना चाहें तो रखें लेकिन एक अंतिम प्रष्न का उत्तर देने की कृपा करें कि वे यदि जेकेएलएफ के सदस्य हैं तो हम पुलिस को सूचना क्यों नहीं दे रहे?’’
शेखर ने सामने तीन सौ मीटर दूर दिख रहे कम्पनी गार्ड़न से आती पानी के प्राकृतिक और कृत्रिम झरनों की युगलबंदी में अपनी हंसी की लय मिला कर हंसते हुए कहा … ‘‘ये किस ने कहा कि हम पूलिस को सूचना नहीं दे रहे? हां मेरा राजस्थान होता तो ये संदेष अब तक नगाड़ों की धुन पर ही हवाओं में तैरता हुआ उन कर्णधारों तक पहुंच जाता। अब आप के वॉकी-टॉकी की रेंज पुलिस की फ्रिक्वंेसी से तो ट्यून्ड है नहीं! तो अब एक ही सहारा है, कम्पनी गार्डन में किसी दुकान पर कोई टेलीफोन मिल जाए बस!’’
शेखर ने गाड़ी रोक कर हमें उतरने को कहा और सुरक्षित स्थान पार्किंग के बाद सामने दुकानदार से टेलीफोन के बारे में पूछा। आज तो कम्पनी गार्ड़न के उस क्षेत्र में बहुत विकास हो गया है जिस की नवीनतम कड़ी में लन्दन की मैड़म तुषाद से प्रेरित कष्मीर देव भूमि मोम संग्रहालय एक मील का है लेकिन उन दिनों छुटपुट खाने-पीने की दुकानें थी जिनमें एक दुकानदार ने डब्ल्यू एल एल अर्थात वायरलेस लोकल लूप टेलीफोन था। शेखर ने अपने रूख्सक में से एक डायरी निकाली जो दिखने में जीवन बीमा निगम की डायरी थी। उसमें कुछ देर कैलेंडर देखते रहे फिर उस दुकानदार के बताये स्थान पर जा कर शेखर ने टेलीफोन से कोई नंबर मिला कर ना मालूम क्या ऊल जलूल कहा ‘‘सेवॉय होटल से एक किलो हलवा आज रात के शरदोत्सव के लिये हवामहल पहुंचा देना।’’
उधर से ना मालूम क्या बात हुई लेकिन शेखर ने फिर उसी तरह कहा … ‘‘जयपुर के लिये फोर्टिस फर्स्ट एड टीम के कोच में चार कलाकारों को एडजस्ट करवाया है कार्ट में एक इंजीनियर और तीन नाग नचाने वाले हैं।”
दुकानदार सहित हम सब शेखर का मुंह देख रहे थे। शेखर ने दुकानदार को फोन के पैसे चुकाये और घड़ी में टाइम देख कर बोले … ‘‘तो तीन बजने में पन्द्रह मिनट बाकी है। मैं समझता हूं कि कम्पनी गार्ड़न नाम के इस वनस्पती उद्यान में आज घूमने जैसा या देखने योग्य कुछ अधिक नहीं है केवल आप लोगों की ‘कम्पनी’ में बिताए हुए ये क्षण यादगार रह जाएंगे। भूगोलषास्त्री चांदनी यदि चाहे तो कम्पनी गार्ड़न के बारे में हमारा कुछ ज्ञानवर्धन कर सकती है।’’
शेखर ने बहुत सहजता से टेलीफोन पर किये गये अपने रहस्यमय संवाद को छिपाना चाहा लेकिन नागेष परसारा ने जैसे उस रहस्य को जानने की ठान ली थी। उन्होंने चलते हुए पूछा ‘‘षेखर साहब, इस मसूरी में आप को हवामहल कैसे याद आ गया? आप तो पुलिस को कुछ सूचना देने वाले थे और …?
मैं भी आष्चर्य में थी और शेखर से दो टूक बात करने का मेरा उद्देष्य तिरोहित हो कर उनके इस अप्रत्याषित व्यवहार का रहस्य जानने की उत्कंठा बढ़ गयी थी। लेकिन अवसर को हथिया लेने में निपुण चांदनी ने नागेष परसारा की बात को काटते हुए कहा … ‘‘लो कर दी ना फिर वो ही नासमझी की बात!! किसी के हृदय की बात हृदय वाले ही जानते हैं और दिमाग की बात दिमाग वाले ही समझ सकते हैं। अब आप ठहरे वन अधिकारी। तो बस!! पशु-पक्षियों की बातें ही समझ सकते हैं। कल से आज तक मेें मैंने इन हजूर को जितना समझा है वो ये कि ये साहब किसी से सीधे कुछ कहते ही नहीं हैं, इनकी बात को तो समझना पड़ता। लेकिन ये बात तो मेरी बुद्धि में भी नहीं आयी। वैसे हमारी मसूरी में भी एक हवा घर है जिसे हम हवामहल कहते हैं इसलिये …।’’
चांदनी की बात पर नागेष परसारा के चेहरे पर कुछ अन्यमनस्कता के भाव आये लेकिन वो बोले कुछ नहीं और अब तो मुझ से भी नहीं रहा गया और मैंने भी शेखर से दो टूक कहा … ‘‘षेखर तुम इतने रहस्यवादी क्यों हो? क्या है ये सेवॉय होटल से एक किलो हलवा ये हवामहल और फर्स्ट एड़ टीम के कोच में चार कलाकार? और ये जीवन बीमा निगम की डायरी में कैलंेडर किस लिये देख रहे थे?’’
शेखर पर तो जैसे हास्य का रंग चढ़ा हुआ था। उन्होंने हमारे प्रष्नों को हवा में उछालते हुए उत्तर दिया … ‘‘वो मैं अगले हफ्ते छुट्टी जा रहा हूं तो …।’’
मैंने शेखर की बात काट कर उनकी बात पकड़ते हुए कहा … ‘‘रहने दो अगले हफ्ते छुट्टी! तुमने टेलीफोन पर आज हलवा पहुंचने की बात कही जो हम तीनों ने सुनी।’’
नागेष परसारा ने मेरी बात से कुछ उत्साहित हो कर मेरा समर्थन करते हुए कहा … ‘‘अरे हां शेखर साहब, आप के शब्द पकड़े गये। अब तो आप को बताना ही पड़ेगा।’’
शेखर को अपनी भूल की अनुभूती हो चुकी थी। उन्होंने गर्दन झुका कर ओह कहते हुए कंधे हल्के से उचकाये और हम तीनों की बातों का अलग-अलग उत्तर देते हुए कहा … ‘‘ वेताल पच्चीसी की आमुख कथा में शांतषील नाम का ब्राह्मण सम्राट विक्रमादित्य से कहता है कि छह कानों के द्वारा सुनी हुई बात रहस्य नहीं रहती, चार कानों की आपसी बातचीत को कोई और नहीं जान पाता और दो कानों के मध्य उपजी बात को तो भगवान भी नहीं जान सकता। एक ही धातु, आकार और भार की बनी हुई तीन प्रतिमाओं का मूल्य उनके गुणों से लगाया जाता है। इसलिये, हृदय के रहस्य सब के सामने प्रकट नहीं किये जाते क्योंकि एक छोटी सी भूल उस रहस्य का महत्व समाप्त कर देती है। मुझे इसी भूल के कारण आप तीनों पर यह रहस्य प्रकट करना होगा लेकिन इस समय हम कम्पनी गार्ड़न में हैं। मैं नहीं चाहता कि यह रहस्य आप तीनों के अतिरिक्त किसी और के कान में पड़े। इसलिये पहले चांदनी इस कम्पनी गार्ड़न के बारे में हमारा ज्ञानवर्धन करे। मैं वचन देता हूं कि यहां से वापसी में मैं आप तीनों को यह रहस्य बता दूंगा।’’
नागेश परसारा ने लगभगा झुंझलाते हुए कहा … ‘‘एक रहस्य सुलझा नहीं और अब ‘एक ही धातु, आकार और भार की बनी हुई तीन प्रतिमाओं का मूल्य उनके गुणों में अंतर’ की पहेली सामने रख दी। इन पहाड़ी रास्तों में इतने घुमाव नहीं हैं जितने सपाट मैदानी क्षेत्र में रहने वाले राजस्थानियों की बातों में!! देखो शेखर साहब, प्रकृती के रहस्यों के साथ जीने वाले हम पहाड़ी लोग बहुत सीधे और सादे हैं लेकिन मानवकृत रहस्य हमें बहुत विचलित करते हैं। इसलिये …।’’
नागेष परसारा की बात पूरी चांदनी ने की … ‘‘इसलिये जब आप वो तीनों रहस्य बताएं तो ये प्रतिमाओं वाला तीसरा रहस्य भी बता देना।’’
शेखर हंस कर रह गये। थोड़ा सा मौसम खुल जाने से बारिष से नहाये हुए फूल और पत्तियों पर बैठी झिलमिलाती धूप ने कम्पनी गार्ड़न में घूमने का आनंद बढ़ा दिया था। चांदनी कम्पनी गार्ड़न के बारे में बता रही थी कि इस गार्ड़न का निर्माण 1840-45 के मध्य प्रख्यात भूवैज्ञानिक डॉ. एच फाकनार लोगी ने ब्रिटिषर्स की सैरगाह मसूरी में इस जगह को एक बगीचे के रूप में विकसित किया जो कालांतर में 1947 तक हिमालय वनस्पतियों का अध्ययन, संरक्षण और विकास का केन्द्र था। 1947 के बाद इस जगह को एक पर्यटन स्थल का रूप दिया जाना शुरू हुआ जो अभी अपने विकासक्रम में हैं। आज इसकी देखभाल मसूरी म्युनिसिपल कारपोरेषन करती है इसलिये सराकारी अभिलेख में इसका नाम म्युनिसिपल गार्ड़न है लेकिन शुरू में इस बगीचे की देखभाल ब्रिटिष कम्पनी प्रषासन की देखरेख में होती रही इसलिये इसका नामकरण कम्पनी गार्ड़न हो गया जो आज भी लोगों की ज़ुबान पर यही नाम है।’’
चांदनी और भी ना मालूम क्या बता रही थी लेकिन मैं अपनी दुनिया में विचरण कर रही थी। गुलाब, ज़ेनिया, डहेलिया, गुलदाउदी, जटरोफा, गेंदा, रजनीगंधा के फूल और डफन बेसिया, बॉटल पाम, चाहना पाम व एरिका पाम व अन्य रंगीन पत्तियों के पौधे इतने करीने से कतारबद्ध हो कर मन को बहुत आल्हादित कर रहे थे। फूलों पर मंडराती हुई तितली और गुनगुनाते हुए भंवरे मेरे कलाकार मन में अनेक कल्पनाओं को जगा रहे थे। कभी मैं तितली बन कर फूल बने शेखर को कांपते हुए चूम रही थी तो कभी शेखर भंवरे की तरह मुझ पर अधखिली कली को प्रेम गीत सुना रहे थे।
मेरी कल्पना के अष्व शेखर के शब्द सुन कर रूक गये। शेखर निर्णायक स्वर में कह रहे थे … कम्पनी गार्ड़न के बाद अब हम गन हिल जाएंगे। यहां कम्पनी गार्ड़न से गन हिल जाने के दो रास्ते हैं। हम ज़ीरो प्वाईंट वाले मालरोड़ से लाल टिब्बा होते हुए जाएंगे जो होटल सन एंड स्नो वाले स्प्रिंग रोड़ से अपेक्षाकृत लंबा तो है लेकिन व्यस्तता के दृष्टिकोण हम अनावष्यक भीड़भाड़ से बच कर इस रास्ते से जल्दी पहुंचेंगे।’’
नागेष परसारा ने बिना किसी भूमिका के पूछा … ‘‘लेकिन वो रहस्य वाली बात?’’
शेखर ने भी बिना भूमिका के कहा … ‘‘हम राजस्थानी अपने वचन के पक्के हैं, रहस्य वाली बात रास्ते में चलते हुए बताएंगे।’’
नागेश परसारा ने फिर संषयात्मक हो कर कहा … ‘‘लेकिन मैं तो यहां से अपनी चौकी पर चला जाऊंगा। फिर …?’’
अब तो लगने लगा कि चांदनी नागेष परसारा के बोलने की प्रतीक्षा की करती रही थी। उसने फिर उनकी बात काटते हुए कहा … ‘‘साढ़े चार बज चुके हैं और समय पेड़ों की छाया के साथ लंबा होता जा रहा है। ये साहब हैं कि यहां से अपनी चौकी जा कर वापस शांम के शरदोत्सव में नहीं बल्की कहीं अपनी ब्याहता को लाने जाएंगे इसलिये सज धज कर दूल्हा बनने जा रहे हैं।’’
शेखर ने चांदनी की तरफ प्यार और प्रषंसा से देख कर नागेष परसारा को संबोधित करते हुए कहा … ‘‘चांदनी ठीक ही तो कह रही है परसारा साहब, आज शरदोत्सव में आप को आना ही है तो हमारे साथ ही चलिये।’’
थोड़ी ना नुकर के बाद नागेष परसारा हमारे साथ चलने को सहमत हुए। उनका सहायक हमारे पीछे उनकी गाड़ी ले कर आने लगा और शेखर ने गाड़ी चलाते हुए रहस्य वाली बात को टालने के लिये चांदनी को कोई गीत गाने के लिये कहा लेकिन चांदनी भी वो रहस्य जानना चाहती थी तो उसने अपने बिंदास अंदाज़ मे शेखर से कहा … ‘‘आप राजस्थानी लोग अपने वचन पक्के हैं या नहीं ये तो आप के टालमटोल रवैये से पता लग रहा है लेकिन हम पहाड़ी लोग अपनी धुन के पक्के हैं। आप को वो रहस्य बताना ही पड़ेगा।”
शेखर ने रेड़ीसन समूह की होटल ओएसिस से बाईं ओर गाड़ी घुमा कर हंसते हुए … ‘‘अरे तुम्हारा नाम चांदनी नहीं चिपकू होना चाहिये था।’’
चांदनी कहां कम पड़ने वाली थी। उसने शेखर को उसी लय में उत्तर देते हुए कहा … ‘‘हां हजूर हम तो चिपकू ही हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वो रहस्य बता देने के बाद भी हम आप को छोड़ देंगे। अब बिना भूमिका के उन सारे प्रष्नों का उत्तर दो।’’
शेखर ने अगले मोड़ पर दाहिनी ओर घूमते हुए कहा … ‘‘अच्छा तो सुनो! मैंने टेलीफोन पर जो ऊल-जलूल कहा उसके हर शब्द का पहला अक्षर लो और देखो क्या बनता है।’’
हम तीनों ने याद कर के ‘सेवॉय होटल से एक किलो हलवा आज रात के शरदोत्सव के लिये हवामहल पहुंचा देना’ वाक्य में से एस एच ई के एच ए आर निकाला तो चांदनी अपनी सीट पर उछल कर बोली … ‘‘अरी दैया री दैया, उड़ी बाबा ये तो आप का नाम है!! लेकिन इसमें आगे ये हवामहल क्या कर रहा है?”
मैं और नागेष परसारा भी अचंभित थे कि उस ऊल जलूल नाम में शेखर का नाम छिपा हुआ था। अब चांदनी की तरह हम भी हवामहल की पहेली को सुलझाना चाहते थे लेकिन कुछ समझ नहीं आया। तब शेखर ने चांदनी के प्रष्न के उत्तर में प्रष्न करते हुए पूछा … ”अजी भूगोलषास्त्रीजी, बच्चों को पढ़ाते हो तो बताओ हवामहल कहां है?’’
शेखर के प्रष्न के उत्तर की कल्पना के साथ ही हम तीनों को वो समीकरण समझ आ गया जिसे चांदनी ने शब्दों में समझाते हुए कहा … ‘‘ओहो, अब समझ में आया आप किसी को बता रहे थे कि शेखर जयपुर वाला बोल रहा हूं!!’’
शेखर ने बहुत सहजता से स्वीकारते हुए कहा … ‘‘हां, और अब दूसरी ऊल-जलूल बात में भी प्रत्येक शब्द के पहले अक्षर को लेकर देखोगे तो समझ जाओगे कि मैं कह रहा था कि जेकेएलएफ यानी जम्मू-कष्मीर लिबरेषन फ्रंट के चार घटक फिएट कार में कार्ट मेकेंजी रोड़ वाले नाग मंदिर जा रहे हैं।’’
हमारी सोच कुंद और आंखें विस्मय से विस्फारित थी जबकि शेखर बहुत धैर्य से गाड़ी चला रहे थे। आगे तुल्लाहमोर एस्टेट से गाड़ी दाहिनी ओर घुमाते हुए शेखर के होंठ गोल हो कर सीटी बजाने लगे तो नागेष परसारा ने पूछा … ‘‘लेकिन आप ने फोन किस को किया, जो नंबर आप ने मिलाया वो तो यंहा के पुलिस स्टेषन का नहीं था। आप तो जीवन बीमा निगम की डायरी में कैलेंडर देख रहे थे तो क्या आपने …?’’
नागेष परसारा ने झिझकते हुए चांदनी की तरफ देखा लेनि इस बार चांदनी ने उनको नहीं टोका। चांदनी उनके मनोभाव को समझकर हंस पड़ी तो शेखर ने बताया … ‘‘मैंने यहां के पुलिस स्टेषन को फोन नहीं किया बल्की राजस्थान में मेरे शीर्षस्थ वरिष्ठ अधिकारी को बताया है। अब वे इस प्रदेष के शीर्षस्थ वरिष्ठ अधिकारी को बताएंगे और …।’’
चांदनी की चमक लौट आयी थी और उसने अपनी चंचल और नटखट आवाज़ में शेखर की बात काटते हुए कहा … ‘‘और यहां के शीर्षस्थ वरिष्ठ अधिकारियों से नीचे उतरती हुई बिजली यहां मसूरी के स्थानीय पुलिस स्टेषन पर गिरेगी और वो कार्ट मेकेंजी रोड़ पर जा कर उन चारों को नाग मंदिर से पकड़ लेंगे। और कोई जान भी नहीं पायेगा कि ये कहानी कहां से शुरू हुई, खेल खतम, पैसा हजम। बच्चों बजाओ ताली।’’
चांदनी वास्तव में ताली बजा कर खुषी प्रकट कर रही थी लेकिन मेरा प्रष्न अभी बाकी था। मैंने अधीर हो कर पूछा … ‘‘लेकिन वो जीवन बीमा निगम की डायरी में कैलेंड़र देखने का क्या रहस्य था?’’
ज़ीरो प्वाईंट पर पहुंच के साथ शेखर ने गाड़ी बहुत आहिस्ता से रोक कर अपने सामान में से वो जीवन बीमा निगम की डायरी निकाली और कैलेंड़र वाला पृष्ठ हमें दिखाते हुए बोले … देखो इस कैलेंड़र में नंबरों के साथ ये जो लाल, पीले, नीले, काले, हरे रंग दिख रहे हैं ये मेरे वरिष्ठ अधिकारियों के कलर कोड़ हैं। रंगों के कोड़ को नंबरों के क्रम से मिलाओगे तो उस वरिष्ठ अधिकारी का नंबर प्रकट हो जाएगा। इस ज़ीरो प्वाईंट पर मुझे लगता है सारे प्रष्न हल हो गये हैं। आगे थोड़ी दूर बाद जंगल की ये नीरवता समाप्त हो कर आबादी की आवाज़ें शुरू हो जाएंगी। अब अगर चांदनी चाहे तो …।’’
चांदनी ने किसी हठी बालक की तरह नकारते हुए कहा … ‘‘ना ना ना ना ना, अभी वो एक ही धातु, एक ही भार और आकार वाली प्रतिमा के अलग-अलग मूल्य का रहस्य बाकी है हजूर!’’
शेखर ने हामी भरते हुए कहा … ‘‘हां हां हां हां, अरे वो तो बहुत साधारण सी सीख और संदेष देने वाली बात है जो गन हिल या सन सेट प्वाइंट पर चाय पीते और पकौडे़ खाते हुए बता दूंगा। अभी तो …।’’
चांदनी ने शेखर का कहा मानते हुए एक शर्त लगा कर कहा … ‘‘लेकिन मैं अकेली नहीं, अरूणिमा दीदी मेरा साथ देगी और और प्रेम के इस नैसर्गिक अवसर के अनुरूप आप को भी गीत में हमारे प्रष्नों का उत्तर देना होगा।’’
मैं चांदनी के इस अप्रत्याषित बदले और निरंतर बदलते जा रहे व्यवहार को समझ नहीं पा रही थी लेकिन उसकी इस अंतिम शर्त में मुझे लगा वो मेरी ही भावना व्यक्त कर रही है। उसने मेरी ओर प्रष्नवाचक किंतु बहुत आत्विष्वास की दृष्टी से देखा और मेरे अंतस की सहमती भी मेरे मौन में व्यक्त हो गयी। चांदनी के मुख्य स्वर में मैं भी अपनी भावनाओं को स्वर में मिला कर गाने लगी।
तुमि करूं छौं याद दगड़िया तुमि करूं छौं याद
अब खतम करो यो दूरी हमार बिचमां दगड़िया।।
तुमरू साथ पा कर मन झुमके झुमके नाचे आज
तेरी मेरी भेंट को आयी जुनली रातमा दगड़िया।।
मेरू सोने को झुनझुना बाजि बाजि पूछे दगड़िया
मेरू सोने की पायल बाजि बाजि पूछे दगड्यिा
तुमरू संदेष को इंतज़ार मा मन मेरो तडपीगे
तुमी लिखुदी पाती को आजि पूछे जवाब दगड़िया
गीत में सवाल-जवाब
चांदनी-अरूणिमा … सिर धौंपेली लटकाई कनी,
नागेष-षेखर … काला सर्प की केंचुली जनी!
चांदनी-अरूणिमा … सिन्दूर से भरी माँग कनी,
नागेष-षेखर … नथूली मा गड़ी नगीना जनी।
चांदनी-अरूणिमा … सी आँखी सरमीली कनी,
नागेष-षेखर … डाँडू मा खिली बुराँसी जनी।
चांदनी-अरूणिमा … मुखड़ी को रंग कनो?
नागेष-षेखर … बाला सूरज को रंग जनो!
चांदनी-अरूणिमा … ओंठू का बीच दाँतुड़ी कनी,
नागेष-षेखर … गठ्यांई भोत्यों माल जनी!
चांदनी-अरूणिमा … स्वर मा मिठास कनी?
नागेष-षेखर … डाँड्यो वासदी हिलाँस जनी!
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