एक छोटा सा व्यंग

कोरोना काल से तुरंत पहले सीएए, एनसीआर व एनपीआर पर कुछ श्वानवृति लोगों की गतिविधियों को लक्ष्य बना कर डेढ़—दो पैराग्राफ का एक छोटा सा व्यंग कुछ प्रबुद्ध मित्रों से साझा किया था। फिर 23—24 मार्च 2020 की मध्य रात्री से लॉकडाउन की घोषणा के पश्चात चले घटनाक्रम में उस श्वानवृति से उत्पन्न दृश्य महाभारत के एक मुख्य पात्र युधिस्थिर के कुत्ते का उनके साथ स्वर्ग जाने का प्रसंग इस कथानक का आधार बनता गया। अगले सात—आठ दिन एक आकार लेता गया और 30 मार्च 2020 से मैं उस कल्पना को ऐतिहासिक कालक्रम में बांध कर फेसबुक पर डालता रहा। प्रस्तुती में आये तथ्यों से अधिक प्रस्तुती के ढंग का प्रभाव न केवल पाठकों की संख्या वरन् उत्सुकता बढाता रहा और डेढ़—दो पैराग्राफ का व्यंग महाभारत के पात्रों के साथ महाभारत की युद्ध पश्चात पांड़वों के स्वर्ग गमन से पूर्व युधिस्थिर के श्वान प्रेम, उस श्वान का अपने समाज के प्रति समर्पण, श्वान समाज द्वारा उत्पन्न की गयी अस्थिरता और उस परिस्थिती से निपटने का उपाय ही इस कथानक की विषयवस्तु है।
एक बात बहुत ईमानदारी से स्पष्ट कर दूं मैं कोई लेखक, विचारक या साहित्यकार नहीं हूं। मेरी पहली पुस्तक ‘नाथ संप्रदाय इतिहास एवं दर्शन’ का विमोचन वर्तमान समय के विद्वान महामना दयाशंकर भार्गव साहब और महामना कृपानाथ शास्त्री जी ने किया तो विमोचन से पूर्व पुस्तक पढ़ कर उनका कहना था कि या तो मैं पुलिस में नहीं हूं या ये पुस्तक मैंने नहीं लिखी। उनका ये कथन मेरी समस्त उपलधियों में आजतक सर्वोपरी है।
चीजों को उलट—पुलट कर देखना, विसंगतियां तलाशना और धारा के विपरीत चलना मेरी आदत है। मेरे लिखने और बोलने का प्रवाह आप को मेरे ज्ञानी होने का भ्रम उत्पन्न कर सकता है लेकिन सच कहूं तो सभ्य और विनम्र हो कर भी मैं एक विद्रोही स्वभाव का छोटा—मोटा मवाली आदमी हूं जो औपचारिकता से परिचित नहीं है। इसलिये मैं उपेन्द्र शर्मा साहब का आभार भी प्रकट नहीं कर रहा क्योंकि यह मेरी दृष्टी में उनके द्वारा मेरी इस पुस्तक को पढ़ने के श्रम और उसे प्रख्यापित करने का मूल्य होगा।
हां मैं यह अवश्य कहूंगा कि उपेन्द्र शर्माजी से परिचय मेरे लिये पुन: एक उपलब्धी है। मुझे बहुत कम लोग प्रभावित कर पाते हैं, तथ्यों की सूझ—बूझ और विषय की पकड़ से इतर उनकी लेखन शैली उनके व्यक्तित्व का एक ऐसा आयाम है जो उन्हें दूसरे पत्रकारों से अलग करती है। मेरे जासूसी जीवन में एक अध्ययन के दौरान जयपुर में नामी समाचार पत्र समूहों सहित तीन हजार से अधिक समाचार पत्र छपते हैं। किस समाचार पत्र की क्या पृष्ठभूमि है, उनके क्या अंधेरे पक्ष हैं, किस राजनेता के अंधेरे पक्ष का अवलंब लेकर किस समाचार समूह से अलग हो कर किस पत्रकार ने किस राजनेता के आशीर्वाद से अपना एक अलग समाचार समूह खड़ा कर लिया …. ये उल्लेख केवल इसलिये प्रासंगिक है कि उपेन्द्र शर्माजी अब तक इस रोग से दूर है। मैंने उनके आलेखों और प्रस्तुतियों में उस पवित्रता को देखा है।
ना ना ना ना, मेरे अंतिम वाक्य को कृपया इस तरह ना देखें कि उन्होंने मेरी पुस्तक का परिचय अपनी लेखनी से दिया है तो मैं भी …।
अलख निरंजन!

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