तो मित्रों, शुरू करते हैं कहानी समोसे की।
नस्ल ए तैमूर लंगड़े के जाह ओ जवाल वाले मुगलिया खानदान में ज़हीरउद्दीन बाबर, नासिरउद्दीन हुमांयु, जलालउद्दीन अकबर, सलीमउद्दीन जहांगीर की बेटे शाहजहां ख़ुर्रम के काबिल आलमगीर बेटे मुहिउद्दीन औरंगजेब ने अपने शराबी कबाबी बाप को 66 साल की उम्र में आगरे के लाल किले में क़ैद कर दिया था। साथ में ‘सेवा’ के लिये 44 वर्षीय वक़्त की मलिका ए हुस्न जहांआरा भी थी। अब ये मत पूछना कि 44 साल की उम्र में जहांआरा कुंवारी क्यों थी। कुंवारी तो उससे बडी बहन हुरल अनिसा और छोटी बहन रोशनआरा भी थी।
खैर साहब, हुआ ये कि आठ वर्ष किले में क़ैद रहते हुए समय के साथ शाहजहां की ख़ुर्रम आराई आनंद और भोग विलास का सामान के कसबल ढीले हो गये तो जहांआरा की ‘सेवा’ से ख़ुश शाहजहां ने उसकी मनोकामना पूरी करने का इरादा किया। जहांआरा ने अकबर के समय के नियम को तोड़कर मुगल शहजादियों को शादी करने का वरदान मांगा।
यहां यह बता दूं कि जहांआरा के एक आशिक को शाहजहां पहले ही तंदूर में भून चुका था, जी हां वो शायद मध्यकाल का पहला ‘तंदूरकांड’ था।
कहानी का अगला अहवाल ये कि शाहजहां ने फ़ारस के मिर्ज़ा बदीउद्दीन सफ़वी के शहजादे मिर्ज़ा अब्बास को अनेक कारणों से जहांआरा के योग्य पाया। उन कारणों में पहला कारण था औरंगजेब की बीवी दिलरस बानो जो मिर्ज़ा बदीउद्दीन की बेटी थी इस प्रकार मिर्ज़ा अब्बास औरंगजेब का साला था और बचपन में जहांआरा के साथ ही रहा था बड़ा होने पर वो फ़ारस चला गया था। दूसरा ये कि मिर्ज़ा अब्बास भी जहांआरा की तरह शायर था और जहांआरा को पसंद करता था। ढलती उम्र के साथ शाहजहां भी लालकिले में तैनात औरंगजेब के सिपाहियों और जहांआरा की ‘भचभची खिलंदड़ी’ से आजिज़ आ चुका था। औरंगजेब भी औरंगाबाद में दिलरस बानो की याद में बीमार और लाचार हो कर बीवी का मकबरा बनवा रहा था और बहुत कुछ सोचकर मिर्ज़ा अब्बास से जहांआरा को बांधकर अपनी सल्तनत से दूर कर देना चाहता था।
संक्षेप में यह कि मिर्ज़ा अब्बास सफ़वी बरसों बाद आगरा आया। अब आप जानते ही हैं साहब कि हमारे आज राजा महाराजाओं के लवाजमें में उनके बावर्ची व मसालची भी होते हैं तो उस समय की कल्पना कर लीजिये कि मिर्ज़ा अब्बास सफ़वी का खानसामा भी साथ था। मिर्ज़ा अब्बास को एक तिकोना मसालेदार भुने या पके हुए सूखे आलू, मटर, प्याज, दाल या कीमे से भरा तला हुआ या बेक किया हुआ व्यंजन बहुत पसंद था।
यहां उस व्यंजन का नाम जानने से पहले दो—चार फ़ारसी शब्दों को जानना ज़रूरी है।
1. सह् या सन् … तीन। ये तो गिनती हुई, सन का दूसरा अर्थ है सल अर्थात सिलवट और झुर्री। अपन कहते हैं ना ”ये सुनते ही उसके माथे पे सल पड़ गये।”
2. बोसा … आमतौर पर बोसा का मतलब चुंबन होता है लेकिन इस का एक मतलब कोना भी है जो बहुत कम प्रचलन में है और अब समाप्तप्राय है।
3. बे सन … जिसमें सल अर्थात झुर्रियां न हो। अब बे सन को मिला कर ‘बेसन’ कर लें तो आप समझ ही गये बेसन चने की दाल का आटा होता है।
4. नी दर … जो दर अर्थात घर में नहीं है, घर का न घाट का
5. मा दर … जो दर अर्थात घर के अंदर है। अब इस मा और दर को मिला दें तो ‘मादर’ हो जाएगा। अब मादर का मतलब तो आप को पता ही है साहब … मां।
अब इन शब्दों के खेल से पहले एक घटना जान लें। आगरे के लाल किले की शाहबुर्ज की छत पर शानदार शामियाना के नीचे दस्तरख़्वान पर मिर्ज़ा अब्बास सफ़वी और मलिका ए हुस्न जहांआरा बैठे शाहबुर्ज से किले के चारों और फैले जंगल के पार यमुना के तट पर लगभग पूरे हो चुके ताजमहल को देख रहे थे। तभी उनकी नज़र कामसिक्त एक गर्दभ युगल पर पड़ी। उत्तेजना में मिर्ज़ा अब्बास सफ़वी ने स्नायुवेग से उठते गिरते जहांआरा के उरोजों को संकेत करते हुए कहा …
”सनबोसा ए बेसन दे दे।”
अर्थ … चने की दाल का तीन कोने वाला व्यंजन अर्थात समोसा दे दे।
लेकिन इसमें छिपे हुए संकेत को देखिये … बिना झुर्रियों वाले समोसे जैसे फूल रहे उरोजों का चुंबन दे दे।
जहांआरा ने क्या जवाब दिया …
”नी दर दर ए मादर से ले।”
अर्थ …
घर से बाहर नहीं, घर के अंदर जा और अपनी मां से ले।
अब इसमें छिपे संकेत को समझिये … घर से बाहर नहीं, अंदर चल, अंदर ले लेना।
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कहानी खत्म हुई साहब, समय उपरांत सनबोसा बोलचाल में मुख सुविधा कहें या देशज रूप कि तीन कोने वाला यह व्यंजन समोसा बन के रह गया और फास्ट फूड में आज हम भारतीयों की पहली पसंद।
कहानी कैसी लगी, बताईयेगा ज़रूर।