दर्शन Philosophy

वर्णसंकरता (सामाजिक वर्ण व्यवस्था में वेद और पुराणों की भूमिका)

वर्णसंकरता (सामाजिक वर्ण व्यवस्था में वेद और पुराणों की भूमिका) आज तीन वर्ष पुरानी एक पोस्ट ने वर्णसंकर शब्द की याद दिला दी। वैसे इस विषय पर विचार और मंथन तो वर्ष 1992 से ही प्रारंभ हो गया था जो वर्ष 2012 में प्रकाशित मेरी पुस्तक ‘नाथ सम्प्रदाय इतिहास एवं

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क्या लिखना चाह

क्या लिखना चाह  क्या लिखना चाह रहा था और क्या लिख दिया। अब भी आखिरी दो शे’र छोड दें तो …..सैलाब दर सैलाब से ये गुमां हो रहा है।।दरिया अपनी औक़ात से उर्यां हो रहा है।।नबी के प्यारों की प्यास तो ना मिटा सका,अब अपनी नाकामी पे पशेमां हो रहा