सामाजिक

भावनाओं का ज्वार लिये

ह्रदय में भावनाओं का ज्वार लिये उदर में हिलोरें लेता संसार लिये कटी जिव्हा पर अगणित उद्गार लिये मैं घूंघट ओढ़े मुख बाधित रही जब तक गर्व से गर्दन उठाये ह्रदय के समीप तुम्हारे वक्ष से सटी रही तुमने जब जब मेरे मुख से घूंघट पट हटाया तुम्हारी अंगुलियों की

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एक कौतुहल बनकर

एक कौतुहल बनकर मन के आंगन में उतरी थी छवी तुम्हारी। सोचते ही सोचते ना मालूम कब आदत बन गयी।। अब प्रतिक्षण प्रतिपल प्रतीक्षा में खुले ह्रदय कपाट बाट जोहते हैं​ नयनों के वातायन अंतस आलोकित है तुम्हारे उजास से।। अब तुम्हारी आदत बन गयी, मेरी पूजा वन्दना आराधना। मेरी

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नौ साल पहले – नौ साल बाद

नौ साल पहले ,,,,, नौ साल बाद आप तो सेंट्रल संस्कृत यूनिवर्सिटी में संस्कृत व्याकरण के प्रोफेसर कमल चंद योगी है बहुत विद्वान और संस्कृत साहित्य के पूरा था वर्ष 2012 में आप मेरी पुस्तक नाथ संप्रदाय इतिहास एवं दर्शन के साक्षी रहे थे और ठीक 1 साल बाद पुणे