मत कहो घबरा गया मत समझो रण छोड दिया।।
ये आज की रचना नहीं है और ना ही कृषी कानून वापसी से कोई संबंध है। लेकिन निर्णय के संशोधन, संवर्धन, परिवर्द्धन, परिवर्तन या परावर्तन
ये आज की रचना नहीं है और ना ही कृषी कानून वापसी से कोई संबंध है। लेकिन निर्णय के संशोधन, संवर्धन, परिवर्द्धन, परिवर्तन या परावर्तन
किसी मित्र को इनबॉक्स भेज कर कहा ”लो पढ लो तुम भी क्या याद करोगे …” जवाब आया … ”बाप रे बाप इतने सारे आतंकवादी
एक महीने से मंदाकिनी रूकी पड़ी है। लेकिन क्या ऐसा हो सकता है? दर असल मैं चाहता था कि मसूरी एपिसोड़ को एक बार में
वर्णसंकरता (सामाजिक वर्ण व्यवस्था में वेद और पुराणों की भूमिका) आज तीन वर्ष पुरानी एक पोस्ट ने वर्णसंकर शब्द की याद दिला दी। वैसे इस
नौ साल पहले ,,,,, नौ साल बाद आप तो सेंट्रल संस्कृत यूनिवर्सिटी में संस्कृत व्याकरण के प्रोफेसर कमल चंद योगी है बहुत विद्वान और संस्कृत
अक्टूबर माह के उस दूसरे गुरूवार को भोर की किरणें भी अभी केसरिया कंबल ओढे़ हिमालय की चोटियों पर सोई हुई थी कि घर के
तो मित्रों, शुरू करते हैं कहानी समोसे की। नस्ल ए तैमूर लंगड़े के जाह ओ जवाल वाले मुगलिया खानदान में ज़हीरउद्दीन बाबर, नासिरउद्दीन हुमांयु, जलालउद्दीन
अब आगे आज तो देहरादून में अलग-अलग समितियों द्वारा अनेक स्थानों पर रावण दहन का आयोजन किया जाता है लेकिन उन दिनों परेड ग्राउंड और
राघव भैय्या और शेखर अपना सामान बांध चुके थे, मैं और मीना भी तैयार थी। अंजली भाभी भी दुर्गा विसर्जन के लिये जाना चाहती थी
क्या लिखना चाह क्या लिखना चाह रहा था और क्या लिख दिया। अब भी आखिरी दो शे’र छोड दें तो …..सैलाब दर सैलाब से ये
रात बहुत हो जाने से मीना मेरे ही घर पर रूक गयी थी। मां मुहूर्त समय में दुर्गा विसर्जन के लिये जाने की हिदायत दे
इस कहानी को मैंने आधी हकीकत आधा फसाना ऐसे ही नहीं कहा कोई भी ज्योतिषीय गणना करने वाला अपने पत्रों को उठाकर देख सकता है