भावनाओं का ज्वार लिये
ह्रदय में भावनाओं का ज्वार लिये उदर में हिलोरें लेता संसार लिये कटी जिव्हा पर अगणित उद्गार लिये मैं घूंघट ओढ़े मुख बाधित रही जब तक गर्व से गर्दन उठाये ह्रदय के समीप तुम्हारे वक्ष से सटी रही तुमने जब जब मेरे मुख से घूंघट पट हटाया तुम्हारी अंगुलियों की